गांधी और गांधीवाद
विश्व के सारे महान धर्म मानव जाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं।-- महात्मा गांधी
24. धर्म संबंधी ज्ञान
प्रवेश
सारे
धर्म ईश्वर को पहचानने के अलग-अलग मार्ग हैं। हर धर्म वाले अपने-अपने धर्म का महत्त्व समझ
जाएं तो आपस में द्वेष कर ही नहीं सकते। धर्म भले ही अनेक हों, उनका सच्चा उद्देश्य एक है
– ईश्वर का दर्शन करना। धर्म ही है जो व्यक्ति को ईश्वर से जोड़ता करता है। यह न
केवल ईश्वर तथा व्यक्ति में परस्पर सम्बन्ध स्थापित करता है, वरन व्यक्ति-व्यक्ति को भी
आपस में बांधे रखता है। धर्म व्यक्तियों को आपस में अलग नहीं करता है वरन् उनमें
एकता स्थापित करता है। उन्नीस वर्ष की उम्र में जब गांधीजी लंदन पहुंचे तो उनका धर्म संबंधी
ज्ञान सीमित ही था। लेकिन लंदन की थियोसॉफिकल सोसाइटी से उन्हें अपने बचपन में
मिली हिंदू मान्यताओं की सीख की ओर लौटने की प्रेरणा मिली, जो उन्हें उनकी मां ने सिखाए थे। गांधी जी को गीता का न तो
संस्कृत में ज्ञान था न ही अपनी मातृभाषा गुजराती में।
विशिष्ट आस्थाओं का आधार
विलायत प्रवास के दौरान
उनकी दो थियोसॉफिकल मित्रों से पहचान हुई। दोनों सगे भाई थे। उनमें से एक ने गांधीजी को सर
एडविन आर्नल्ड की ‘लाइट आफ एशिया’ (एशिया की ज्योति : बुद्ध चरित, गौतम बुद्ध की जीवन कथा) और ‘दि सांग सेलेस्टियल’
(दिव्य संगीत : ‘भगवद्गीता’ का अनुवाद) नाम की दो पुस्तकों को पढ़ने के लिए कहा। इन पुस्तकों को पढ़ने के बाद इनका गांधीजी पर बहुत गहरा
प्रभाव पड़ा था। ‘दि सांग सेलेस्टियल’ जीवन भर गीता का उनका प्रिय अनुवाद बना रहा।
वे श्रीमद्भगवद्गीता के मतवाले हो उठे। उस प्रवास में उन्हें भारत के इसी आलोक
की ज़रूरत थी। उसने उनकी आस्था लौटा दी। उन्हें आत्मा की सर्वोच्चता की अनुभूति
हुई। उनको गीता से सत्य की अनुभूति हुई। कुरुक्षेत्र के युद्ध के पहले भगवान श्री
कृष्ण का अर्जुन को गीता का उपदेश, वास्तव में गांधी जी की विशिष्ट आस्थाओं का आधार था। इसी
आधार पर उन्होंने अपने जीवन-संग्राम को टिकाया था। गीता के उपदेश उनके मन में पैठ
गए। उनकी प्रकृति को गीता से बल मिला। धीरे-धीरे गीता उनके जीवन की सूत्रधार बन
गई। बुद्ध के जीवन और गीता के संदेश ने उनके जीवन को एक नई चेतना प्रदान की। बुद्ध के त्याग और उपदेशों ने
उन्हें अभिभूत कर दिया। इन्हीं भाइयों ने गांधीजी को श्रीमती एनी बेसेंट मुलाक़ात
करवाई। श्रीमती बेसेंट हाल ही में थियोसॉफिकल सोसायटी
में दाखिल हुई थीं। गांधीजी ने ब्लैवट्स्की की पुस्तक ‘की टु थियोसोफी’ (थियोसोफी
की कुंजी) पढ़ी थी। इससे उनें हिन्दू धर्म की पुस्तकें पढ़ने की इच्छा पैदा हुई।
धर्माचार्यों से भेंट
लंदन के निरामिष
जलपान-गृहों और भोजनालयों में उनकी भेंट केवल खान-पान में परहेज की धुन रखने वालों
से ही नहीं, कुछ सच्चे धर्माचार्यों से
भी हुई। इनमें से एक के द्वारा गांधीजी का बाइबिल से पहला परिचय हुआ। ‘नया इकरार’ (न्यू
टेस्टामेंट) से वह बहुत प्रभावित हुए। ‘न्यू टेस्टामेंट’, प्रभू यीशु का सुसमाचार और विशेष कर ‘सर्मन ऑन दी
माउण्ट’ (गिरि प्रवचन) ने गांधीजी के हृदय पर गहरा असर किया। ‘गिरि प्रवचन’ (सरमन आन दि माउंट) तो उनके
दिल में ही बैठ गया। उनकी बुद्धि ने गीता से इसकी तुलना की।
- जो तुझसे कुर्ता मांगे उसे अंगरखा भी दे दे
- जो तेरे दाहिने गाल पर तमाचा मारे, बांया गाल भी उसके सामने कर दे
इन
बातों ने उन्हें न केवल अपार आनन्द प्रदान किया बल्कि यह उनके जीवन का लक्ष्य बन गया।
यह पढ़कर उन्हें गुजराती
कवि श्यामल भट्ट का निम्न छप्पय याद आ गया, जिसे वह बचपन में गुनगुनाया करते थे : पाणी आपने पाय भलुं
भोजन तो दीजे; आवी नमाये शीश, दण्डवत कोडे कीजे। आपण घासे दाम, काम महोरोनूं करीए; आप उगारे प्राण, ते तणा दुखमां मरीए। गुण केडे तो गुण दशगणो, मन, वाचा, कर्मे करी। अवगुण केडे जे गुण करे, ते जगमां जीत्यो सही।।
उनके बालमन ने गीता, आर्नल्ड कृत बुद्ध-चरित और ईसा के वचनों का एकीकरण
किया। घृणा के बदले प्रेम और बुराई के बदले भलाई करने की बात ने उन्हें मुग्ध कर
दिया। हालाकि इसका मर्म उन्होंने अभी पूरी तरह नहीं समझा था, लेकिन उनके अति ग्रहणशील मन को ये शिक्षाएं आन्दोलित
करने लगी थी।
धर्माचार्यों की जीवनियां
उन्होंने दूसरे
धर्माचार्यों की जीवनियां भी पढी। कार्लाइल की रचना ‘हीरोज़ एंड हीरो वर्शिप’ (विभूतियाँ और विभूति-पूजा)
में पैगंबरे इस्लाम वाला
अध्याय भी पढ़ा। हीरोज़ एण्ड हीरो-वर्शिप से उन्होंने हजरत मुहम्मद की
महानता, वीरता और तपश्चर्या के
बारे में ज्ञान प्राप्त किया। ये सारे अध्ययन आने वाले दिनों में गांधीजी के
सम्पूर्ण चिंतन में समाहित हो गए। उनका मानना था, स्तुति, उपासना प्रार्थना वहम नहीं हैं।
ये निरा वाणी-विलास नहीं होती। यदि हम हृदय की निर्मलता को पा लें, उसके तारों को सुसंगठित रखें, तो उनसे जो सुर निकलते हैं, वे गगन-गामी होते हैं। विकाररूपी मलों की शुद्धि के लिए हार्दिक उपासना एक
रामबाण औषधि है।
उपसंहार
विभिन्न
धर्मों से परिचय का परिणाम यह हुआ कि घृणा के बदले प्रेम और बुराई के बदले भलाई करने की बात उनके मन में बस
गई। इस पठन-पाठन से सभी धर्मों के प्रति आदर की भावना उनके दिल में घर कर गई। शाकाहारी
भोजन, शराब से तौबा और यौन संबंध से
दूरी बनाकर मोहनदास दोबारा अपनी जड़ों की तरफ़ लौटने लगे। थियोसॉफ़िकल सोसाइटी की
प्रेरणा से उन्होंने विश्व बंधुत्व का अपना सिद्धांत बनाया जिस में सभी इंसानों और
धर्मों को मानने वालों को बराबरी का दर्ज़ा देने का सपना था। गांधीजी हमेशा पूजा-प्रार्थना में
भरोसा करते थे। यह गांधीजी की ही खासियत थी कि एक
हिंदू होते हुए भी वह दूसरे धर्म के लोगों के प्रिय रहे और धार्मिक तौर पर हर धर्म का आदर करते रहे।
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां
गांधी और
गांधीवाद : 1. जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि, गांधी और
गांधीवाद 2. लिखावट, गांधी और
गांधीवाद 3. गांधीजी का बचपन, 4. बेईमानी ज़्यादा
दिनों तक नहीं टिकती, 5. मांस खाने की आदत, 6. डर और रामनाम, 7. विवाह -
विषयासक्त प्रेम 8. कुसंगति का असर
और प्रायश्चित, 9. गांधीजी के
जीवन-सूत्र, 10. सच बोलने वाले को
चौकस भी रहना चाहिए 11. भारतीय
राष्ट्रवाद के जन्म के कारक 12. राजनीतिक संगठन 13. इल्बर्ट बिल
विवाद, 14. भारतीय राष्ट्रीय
कांग्रेस का उदय, 15. कांग्रेस के जन्म के संबंध में
सेफ्टी वाल्व सिद..., 16. प्रारंभिक कांग्रेस के
कार्यक्रम और लक्ष्य, 17. प्रारंभिक कांग्रेस नेतृत्व की
सामाजिक रचना, 18. गांधीजी के पिता की मृत्यु, 19. विलायत क़ानून की पढाई के लिए, 20. शाकाहार और गांधी, 21. गांधीजी ने अपनाया अंग्रेज़ी
तौर-तरीक़े,
22. सादगी से जीवन अधिक सारमय, 23. असत्य के विष को बाहर निकाला
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