जन्मदिन के अवसर पर
जगदीश चन्द्र माथुर-
साहित्यकार के साथ कुशल प्रशासक
आज हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार जगदीश चन्द्र माथुर की जयंती है। उनका जन्म 16 जुलाई, 1917 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िला के खुर्जा, में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा खुर्जा में
हुई। उच्च शिक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय में हुई जहां से उन्होंने अंग्रेज़ी में एम.ए.
किया। 1941 में उन्होंने 'इंडियन
सिविल सर्विस' की परीक्षा पास की।
उनकी बिहार में नियुक्ति हुई और 1955 से 1962 शिक्षा सचिव के रूप में कार्य किया।
उसके बाद वे दो वर्ष के लिए आकाशवाणी के महानिदेशक के रूप में पदस्थ हुए। इसके बाद 1971 तक वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय के
विज़़िटिंग फ़ेलो के अतिरिक्त अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स से जुड़े थे। 1971
में वह गृह मंत्रालय, भारत
सरकार के हिंदी सलाहकार नियुक्त हुए।
हिंदी साहित्य में वह एक महत्त्वपूर्ण नाटककार एवं
एकांकीकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। मेरी बाँसुरी (1936), भोर का तारा (1946 ई.), ओ मेरे अपने (1950), कोणार्क (1951 ई.), बंदी (1954), कुँवरसिंह की टेक (1954), गगन सवारी (1958), शारदीया (1959 ईं), पहला राजा (1969 ई.), दशरथ नंदन (1974), उनकी प्रमुख नाटक कृतियाँ हैं। दस तस्वीरें (1962 ई.) और जिन्होंने जीना जाना (1972 ई.) में रेखाचित्र संस्मरण हैं। नाटक 'कोणार्क' से एक सशक्त नाटककार के रूप में उनकी प्रतिष्ठा हुई। हालाकि उनके आरंभिक नाटकों में कौतूहल और स्वच्छंद प्रेमाकुलता देखने को
मिलता है, लेकिन 'कोणार्क' के माध्यम से समसामयिक को अनुभूत करके उसकी प्रमाणिकता
को संस्कृति के माध्यम से सिद्ध करने का उनका आग्रह उन्हें विशिष्ट नाटककारों की
श्रेणी में ला खड़ा करता है। ‘कोणार्क’ एक प्रयोगशील नाटक है। इसमें एक भी नारी पात्र
नहीं है लेकिन फिर भी वह बेहद सफलतापूर्वक मंचित होकर दर्शकों का चहेता मंच नाटक
बना रहा है। रीढ़ की हड्डी का संबंध समाज के भीतर के बदलते रिश्तों और मानवीय संबंधों से है। 'शारदीया' के नाटकों में समस्या को व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखकर
देखने का आभास मिलता है। परंपराशील नाट्य (1968 ई.) उनकी महत्वपूर्ण समीक्षा-कृति है। ‘बहुजन-सम्प्रेषण के माध्यम’ जगदीश जी की
‘जन-संचार’ पर विशिष्ट पुस्तक मानी गई है। नाटककार के रूप में विख्यात माथुर जी ने
अपनी विशिष्ट शैली में चरित लेख, ललित निबन्ध और नाट्य–निबन्ध भी लिखे हैं। उनके द्वारा रचित उपन्यास हैं मुट्ठी भर कंकर, आधा पुल, यादों का पहाड़, कभी ना छोड़े खत, धरती धन अपना, टुंडा लाट, घास गोदाम, लाट की वापसी, नरक कुंड में वास आदि।
जगदीश चंद्र माथुर एक साहित्यकार के साथ कुशल प्रशासक भी
थे। तब देश ग़ुलामी से मुक्त होकर आज़ादी की साँस ले रहा था। यह दौर परिवर्तन और
निर्माण का था। ऐसे
ऐतिहासिक समय में जगदीश चंद्र माथुर ऑल इंडिया रेडियो के डायरेक्टर जनरल थे। उन्होंने ही इसका
नाम बदल कर आकाशवाणी किया था। आकाशवाणी में काम करते हुए हिन्दी की लोकप्रियता के
विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। यह वह समय था जब देश में टेलीविज़न शुरू होने जा रहा था। टेलीविजन उन्हीं के जमाने
में वर्ष 1949 में
शुरू हुआ था। माथुर
साहब ने ही टीवी का नाम दूरदर्शन रखा था। दूरदर्शन के उद्घाटन के अवसर पर बोलते हुए
उन्होंने कहा था, "सरकार किसी भी भाषा से चलाई जाए पर लोकतंत्र हिंदी और भारतीय भाषाओं के बल पर ही चलेगा। हिंदी ही
सेतु का काम करेगी, सूचना और संचार तंत्र के सहारे ही हम अपनी निरक्षर जनता तक पहुँच सकते हैं।
भारत के बहुमुखी विकास की क्रांति यहीं से शुरू होगी।" 1944 में बिहार के
सुप्रसिद्ध सांस्कृतिक पर्व वैशाली महोत्सव की शुरुआत उन्होंने ही की थी।
जगदीश
चंद्र माथुर का निधन 14 मई, 1978 को हुआ।
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मनोज कुमार
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