गांधी
और गांधीवाद
अपनी गलती स्वीकार करना बहुत कठिन है; लेकिन फिर
स्वयं को शुद्ध करने का कोई और उपाय नहीं है। - महात्मा गांधी
5. मांस खाने की आदत
“देखो बलशाली अंग्रेज
करें लघु हिंदुस्तानी पर राज
खाता मांस, तभी तो है
वह लम्बा पांच हाथ।”
वह गांधी जी से बलशाली था। खेल-कूद में भी उनसे काफ़ी आगे
था। उसे किसी चीज़ से डर नहीं लगता था।
बात-बात में वह उन्हें अपनी मांसपेशियां दिखाता रहता
था। उसके कसरती बदन और साहसी प्रकृति ने
मोहन पर सम्मोहन कर रखा था। उसने गांधीजी को बताया कि कई हिन्दू शिक्षक छुप-छुपाकर मांसाहार
और मद्यपान करते हैं। गांधीजी
को लगा कि उस मित्र की तरह वह भी बलवान हो जाएं तो कितना अच्छा हो! उससे प्रभावित
हो बालक गांधी ने मांस खाने की ठान ली। उसने मोहन को मांस खाने के तरह-तरह
के फायदे गिनाते हुए कहा, “शक्तिशाली
अंग्रेज़ इसलिए ठिगने हिन्दुस्तानी
पर राज कर रहा है,
क्योंकि अंग्रेज़ अपनी भीम जैसी शक्ति पशुओं के मांस से प्राप्त करते हैं।” इन बातों के असर में गांधीजी यह मानने लगे कि मांसाहार अच्छी
चीज़ है। उन्हें लगा कि इससे वे ताकतवर हो जाएंगे, और भारतीय भी शक्तिशाली हो जाएंगे। मांस-भक्षण एक “सुधार” कार्यक्रम
होगा और अगर सारा देश मांसाहार करे तो अंग्रेजों को हराया जा सकता है। गांधीजी को
बलवान और साहसी बनना था और अंग्रेजों को हराकर भारत को आज़ाद कराना था। उस समय
गांधीजी को यह भान नहीं हुआ कि मांसाहार करने में माता-पिता को धोखा देना होगा। मांस-भक्षण
का दिन तय हुआ। दोनों नदी किनारे पहुंचे। गांधी जी ने बकरे के मांस का एक टुकड़ा खाया।
उन्हें उबकाई आने लगी। वे वहां से चले आए। उस रात गांधी जी को सपने आते रहे कि बकरा
उनके पेट में लातें मार रहा है।
बाद में वह लड़का जब-तब मांस लाता और गांधीजी उसे
खाते। उन्हें अब स्वाद आने लगा था। पर बाद में उन्होंने मांस खाना छोड़ दिया। इसलिए नहीं
कि वे इसे खराब मानते थे, बल्कि इसलिए कि इसके लिए उन्हें अपने धर्मपरायण मां-बाप से झूठ बोलना पड़ता था। एक तो उनका वैष्णव परिवार
था उसपर से गांधी जी पर जैन प्रभाव था। मांस खाना तो उनके लिए अत्यंत ही घृणित काम
था। उन्हें यह महसूस हुआ कि मांस खाने
से भी ज़्यादा बुरा वे माता-पिता से चुरा कर खाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने मांस
खाना छोड़ दिया। उनका मांसाहार
हमेशा के लिए छूट गया। माता-पिता यह कभी नहीं जान पाए कि उनका बेटा मांसाहार कर
चुका है।
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मनोज कुमार
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