अग्निपथ योजना
ख़ास बातें
अग्निपथ योजना अधिकारियों
के पद से नीचे के सैनिकों की भर्ती के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू की गई योजना है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसकी घोषणा 16 जून 2022 को की थी। अग्निपथ भर्ती योजना के माध्यम से भारतीय सेनाओं को ज्यादा
युवा और नई तकनीकों में माहिर बनाने की योजना है। इस स्कीम से सरकार को सेना की औसत उम्र 32 साल से 26 साल करने में
सहायता मिलेगी जिससे न सिर्फ सशस्त्र बल में युवा शक्ति का संचार होगा, बल्कि बहुत से
युवाओं को नौकरी भी मिलेगी। अग्निपथ योजना के लिए महिलाएं भी आवेदन कर सकती हैं और
सफल रहने पर समान सुविधाओं की हकदार होंगी। अग्निपथ योजना भारतीय सेना के तीनों
अंगों थलसेना, वायुसेना और
नौसेना में क्रमश: जवान, एयरमैन और
नाविक के पदों पर भर्ती के लिए रक्षा मंत्रालय द्वारा लाई गई एक नई योजना है।
इस योजना के तहत सेना में शामिल होने वाले जवानों को
‘अग्निवीर’ के नाम से जाना जाएगा। उनकी सेना में भर्ती चार सालों के लिए
होगी और इस कार्यकाल में 6 महीने की
ट्रेनिंग अवधि भी शामिल है। भर्ती होने की उम्र 17.5 साल से 21 साल के बीच होनी चाहिए। आवेदन करने वाले युवा
कम से कम 50 फीसदी
नंबरों के साथ 12वीं पास
होने चाहिए। चार वर्ष की सेवा के पश्चात 25 प्रतिशत अग्निवीरों को उनकी कौशलता के आधार पर
स्थाई किया जाएगा तब वे जूनियर कमीशंड अफसर और इस जैसे पदों के रेगुलर नियमों
द्वारा शासित हो पाएंगे। इसके बाद अग्निवीरों को बाकी जवानो की ही तरह
पेंशन और अन्य सुविधाएं मुहैया कराई जाएगी। बाक़ी अन्य अग्निवीरों को उनकी कौशलता
के अनुरूप स्किल सर्टिफिकेट दिया जाएगा, जो भविष्य में उनके लिए रोजगार के रास्ते
खोलेगा। रक्षा मंत्रालय और विभिन्न राज्यों के द्वारा सुरक्षा बलों की बहाली प्रक्रिया में अग्निवीरों को तरजीह दी जाएगी। सेवा
के दौरान किसी प्रकार की अनहोनी होने की अवस्था में अग्निवीरों को 48 लाख रूपए का
गैर-अंशदाई जीवन बीमा किया जाएगा। वहीं यदि सेवा के दौरान किसी की मृत्यु हो जाती
है, तो 44 लाख रुपये पीड़ित
परिवार को दिए जाएँगे। इन 44 लाख रुपयों
के अलावा सरकार ऐसे शहीदों के बचे हुए सेवाकाल (अधिकतम 4 साल) के वेतन का
भुगतान भी करेगी। साथ ही अन्य अग्निपथ योजना के माध्यम से भर्ती हुए जवानों को
मिलने वाली सेवानिधि भी, शहीद के
परिवार को दी जाएगी। वहीं यदि कोई जवान सेवा के दौरान दिव्यांग हो जाता है, तो उसे उसकी
दिव्यांगता के प्रतिशत के आधार पर मुआवजा दिया जाएगा। (100% 44लाख, 75% 25 लाख और
50% 15लाख रुपये) अग्निवीरों को सेना के जवानों की तरह उत्त्कृष्ट प्रदर्शन के एवज
में गैलेंट्री अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। योजना के तहत पहले साल 30,000 रुपये, दूसरे साल
33,000 रुपये, तीसरे साल
36,500 रुपये वेतन दिया जाएगा जोकि सर्विस के चौथे साल तक बढ़कर 40 हजार रुपये तक हो
जाएगा। अग्निपथ
योजना में बेसिक पे के साथ-साथ युवाओं को भत्ते भी दिये जाएंगे। इन भत्तों में
रिस्क एंड हार्डशिप, राशन, ड्रेस और ट्रैवल
एलाउंस प्रमुख भत्ते हैं। अग्निवीरों को ग्रेच्युटी और पेंशन संबंधी लाभ नहीं
प्राप्त होंगे। सेवा निधि योजना के तहत वेतन का 30 फीसदी हिस्सा सेविंग के रूप में रख लिया जाएगा।
सरकार इसमें इतना
ही योगदान करेगी। इस प्रकार जो
अग्निवीर 4 साल की सेवा
समाप्ति के बाद सेना से बाहर होंगे उन्हें सेवा निधि के तहत लगभग 10.04 लाख रूपए ब्याज
सहित (लगभग 11,70,000 रुपये) दी
जाएगी। जिसका इस्तेमाल पढाई,
व्यवसाय या
अन्य कार्यों में अग्निवीर कर सकेंगे। ये पैसा टैक्स फ्री होगा। योजना के तहत
भर्ती होने वाले युवाओं को कश्मीर और देश के अलग-अलग हिस्सों में तैनात किया
जाएगा।
इसकी ज़रूरत क्यों पड़ी?
सेना में रिफॉर्म लंबे समय से पेंडिंग था। साल 1989 में ये काम शुरू हुआ था। सेना
यह चाहती थी कि कमांडिंग ऑफ़िसर की उम्र कम हो। टीथ-टू-टेल रेशियो कम हो। इस पर
कुछ काम हुए और कमांडिंग ऑफ़िसर की उम्र कम की गई, यानी जो टीथ-टू-टेल रेशियो थी, उसे कम किया गया। टीथ-टू-टेल अनुपात एक सैन्य शब्द है जो
प्रत्येक लड़ाकू सैनिक ("टीथ") को आपूर्ति और सहायता प्रदान करने के लिए
आवश्यक सैन्य कर्मियों ("टेल") की मात्रा को संदर्भित करता है। दूसरे शब्दों में अगर कहें तो टीथ और
टेल रेशियो दरअसल युद्ध लड़ने वाले सैनिकों और उन्हें मदद पहुंचाने वाले सैनिकों
का अनुपात होता है। व्यापार-उत्पादन जगत में यह शब्द बहुत
पहले से प्रचलित है। जिसमें कटौती की गुंजाइश हो (ओवरहेड्स कॉस्ट), उसे टेल और जिसकी लागत घटाई नहीं जा सकती है (प्रॉडक्शन कॉस्ट), उसे टीथ माना गया। युद्ध भूमि में दुश्मन से सीधा मुकाबले
के लिए जो सैनिक योद्धाओं हैं उन्हें टीथ उनकी मदद के लिए जो मददगार होते हैं
उन्हें टेल कहा जाता है। अभी यह अनुपात 2-1 का है। सैन्य सुधारों के लिए गठित विभिन्न
समितियों ने भी अपनी-अपनी रिपोर्ट में सेना में 'टीथ टू टेल रेशियो' घटाने पर जोर दिया है। भारतीय सेना के पास अपने टेल में कटौती करने की गुंजाइश है। यह कटौती
बहुत ज़रूरी है ताकि वह दुनिया भर की सेना के मुकाबले प्रतिस्पर्धी बनी रहे।
अग्निपथ स्कीम का एक मकसद वेतन और पेंशन मद में कटौती का भी है ताकि रक्षा
साजो-सामान पर खर्च बढ़ाया जा सके। अभी आर्मी अपनी आवंटित रकम का मात्र 16 प्रतिशत हिस्सा ही रक्षा साजो-सामान की खरीद पर कर पाती है, शेष रकम वेतन एवं पेंशन मद में ही चला जाता है। कारगिल रिव्यू कमेटी के
अंदर अरुण सिंह कमेटी ने कहा कि एक सीडीएस का गठन होना चाहिए, जिसका गठन किया गया। उसी चीज़ को आगे बढाते हुए जो अगला रिफॉर्म था, वह था कि सेना की जो औसत उम्र आज 32 साल है, उसे 26 साल लाया जाए। इसके लिए सेना के तीनों चीफ़ और जनरल रावत और कई लोगों के बीच
इस पर चर्चा हुई कि इसके क्या-क्या तरीके हो सकते हैं। इसके अलावा बाहर के देशों
की भी स्टडी की गयी।
किन देशों में लागू है अग्निपथ जैसी योजना
विदेशों में भी सेना में इस तरह की भर्तियां होती रही हैं। दुनिया के कई ऐसे
देश हैं जहां कम अवधि के लिए सेना में भर्तियां होती हैं। लेकिन ध्यान देने वाली
बात यह है कि इन देशों में सेना में सेवा देना अनिवार्य है और इसके लिए कानून बना
हुआ है, लेकिन अग्निपथ
योजना में ऐसा नहीं है।
अमेरिका में पुरुषों के लिए 2 वर्ष की अनिवार्य सैन्य सेवा का प्रावधान है। इसराइल में सैन्य
सेवा पुरुषों और महिलाओं के लिए अनिवार्य है। पुरुष इसरायली रक्षा बल में तीन साल
और महिलाएं लगभग दो साल तक सेवा करती हैं। दक्षिण कोरिया में शारीरिक रूप से
सक्षम सभी पुरुषों को सेना में 21 महीने, नौसेना में 23 महीने या वायु सेना में 24 महीने की सेवा देना अनिवार्य है। उत्तर कोरिया में पुरुषों को 11 साल और महिलाओं को सात साल सेना में नौकरी करनी पड़ती है। अफ्रीकी देश इरीट्रिया
में अनिवार्य रूप से पुरुषों, युवाओं और अविवाहित महिलाओं को 18
महीने देश की सेना में काम करना पड़ता
है। स्विट्ज़रलैंड में 18 से 34 वर्ष की आयु के पुरुषों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है। अनिवार्य सेवा 21 सप्ताह लंबी है, इसके बाद सालाना अतिरिक्त प्रशिक्षण दिया जाता है। ब्राजील में 18 साल के पुरुषों के लिए 10 से 12 महीने के बीच अनिवार्य सैन्य सेवा देनी पड़ती है। सीरिया में पुरुषों को 18 महीने के लिए अनिवार्य सैन्य सेवा देनी पड़ती है। जॉर्जिया में एक साल के लिए
अनिवार्य सैन्य सेवा है। इसमें तीन महीने के लिए युद्ध प्रशिक्षण दिया जाता है, बचे हुए 9 महीने ड्यूटी ऑफिसर
की तरह काम करना पड़ता है जो पेशेवर सेना की मदद करते हैं। लिथुआनिया में 18 से 26 साल के पुरुषों को एक साल के लिए सेना में अनिवार्य रूप से सेवा देनी पड़ती है। स्वीडन में 4000 पुरुष और महिलाओं को अनिवार्य सैन्य सेवा में बुलाया जाता है। तुर्की में 20 साल से अधिक आयु के सभी पुरुषों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है। उन्हें 6 से 15 महीने के बीच सेना में सेवा देनी पड़ती है। ग्रीस में 19 साल के पुरुषों के लिए 9 महीने की सैन्य सेवा अनिवार्य है। ईरान में 18 साल से अधिक आयु के पुरुषों को 24
महीने सेना में नौकरी करनी पड़ती है। क्यूबा में 17 से 28 साल की आयु के पुरुषों को 2 साल तक अनिवार्य सैन्य सेवा करनी पड़ती है।
विरोध
अग्निपथ योजना की घोषणा के बाद से देश
के कई हिस्सों में छात्र इसका विरोध कर रहे हैं। कई राज्यों में आगजनी, पत्थरबाज़ी की घटनाएं घटीं। इस योजना का कई कारणों से विरोध हो रहा है। आलोचकों का कहना है कि ट्रेनिंग ले चुके अग्निवीर सेना से रिटायर होने के बाद
क्या करेंगे इसे लेकर कोई योजना होनी चाहिए। विरोध का प्रमुख कारण यह है कि 4 साल की सेवा पूरी कर लेने के बाद अग्निवीरों को किसी तरह की पेंशन नहीं दी जाएगी। अग्निवीरों को
पूर्व सैनिकों का दर्जा और अन्य सुविधाएं भी नहीं मिलेंगी। दूसरा तर्क यह है कि 4 साल की सेवा के बाद अग्निवीर बेरोजगार हो जाएंगे और उन्हें फिर से किसी रोजगार
की तलाश करनी पड़ेगी क्योंकि इस बैच के केवल 25% जवानों को ही 15 साल की अवधि के लिये उनकी संबंधित सेवाओं में वापस भरती किया जाएगा। हालाँकि 75% अग्निवीरों को सेवा निधि पैकेज के तौर पर 12 लाख रुपए दिए जाएंगे जिससे वह अपना कोई काम शुरू कर सकते हैं। इसके अलावा 48 लाख का इंश्योरेंस कवर होगा। हाल ही में सरकार की तरफ से ऐलान किया गया है कि
पूर्व अग्निवीरों के लिए 10 फीसदी पद अर्धसैनिक बलों के लिए आरक्षित
किए जाएंगे। इनमें केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ़), सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी), केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ़) और रेलवे पुलिस बल (आरपीएफ़) जैसे
सुरक्षाबलों में होने वाली भर्तियां शामिल है। पूर्व अग्निवीरों को पीईटी यानी
फ़िज़िकल एफ़िशिएंसी टेस्ट में छूट दी गई है और शुरू में अधिकतम उम्र की सीमा में 5 साल (पहले साल में) और बाद के सालों में 3 साल की छूट दी जाएगी। इस तरह से इन अर्धसैनिक
बलों को एक तरह से तैयार सैनिक मिल रहे हैं।
विरोध का एक कारण यह भी है कि सेना में
भर्ती होने वाले अग्निवीरों को 4 साल का कार्यकाल पूरा
करना होगा। इस बीच वह अपनी मर्जी से नौकरी नहीं छोड़
सकते। वे केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही अपनी नौकरी छोड़ सकते हैं, लेकिन उसके लिए उन्हें अधिकारियों से इजाजत लेनी पड़ेगी। कुछ लोग यह मानते हैं कि जब एक बड़ी संख्या में हथियार चलाने के
लिए प्रशिक्षित किए गए युवा नौकरी की अवधि पूरी होने पर वापस लौटेंगे तब
क़ानून-व्यवस्था से जुड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। इसके साथ ही इस योजना की वजह से
भारतीय सेना में नौसिखिए जवानों की संख्या बढ़ जाएगी, जो शत्रु देशों की ओर से मिलने वाली चुनौतियों का सामना करने में असमर्थ होंगे।
अग्निवीरों को युद्ध के मोर्चे पर भी तैनात किया जा सकता है और उनकी भूमिका किसी
अन्य सैनिक से अलग नहीं होगी। इस योजना के कारण सशस्त्र बलों की सदियों पुरानी
रेजिमेंटल संरचना बाधित हो सकती है। कुछ लोगों का यह मानना है कि इस योजना से भाड़े के सैनिक बनेंगे, जिनमें देश के प्रति सेवा और समर्पण का अभाव अधिक होगा। एक सैनिक का मूल
उद्देश्य देशभक्ति होना चाहिए, पैसा कमाना नहीं। दूसरा
मत है कि मात्र 6 महीने की ट्रेनिंग से सैनिक नहीं बनता, उसके लिए उसे ऑपरेशन में भाग लेना होता है।
जहां तक देश की सुरक्षा का सवाल है तो
उसमें कई सर्विस तमाम तरह के सुधार लाती है। अग्निवीर भी एक सुधार है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि हम अपनी आर्मी को जवान रख सकते हैं। जैसा कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) ने कहा है 'अग्निपथ योजना' का कार्यान्वयन सेवाओं में कुशल, अनुशासित और प्रेरित युवा प्रदान करके सेवाओं और राष्ट्र निर्माण में युवा
प्रोफ़ाइल बनाए रखने की दिशा में प्रमुख सुधारों में से एक है। सरकार की तरफ से यह कहा जा रहा है कि सरकार की यह योजना काफी सोच-समझकर लाई गई
है, जिसमें युवाओं के हित को सर्वोपरि रखा
गया है। लेकिन जिस तरह से अग्निपथ योजना पर
वाद-विवाद हो रहा है, ज़रूरी तो यह है कि समय रहते इसके विभिन्न
पहलुओं पर जांच हो और अगर ज़रूरी हो तो आवश्यक सुधार के कदम उठाए जाने चाहिए।
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मनोज कुमार
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