गांधी
और गांधीवाद
महात्मा गांधी |
4. बेईमानी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिकती
गांधीवाद क्या है?
गांधीवाद क्या है? गांधीवाद एक दर्शन समझा जाता है। पर
गांधीजी ने किसी वाद को जन्म नहीं दिया। बल्कि वे किसी वाद या सम्प्रदाय में
विश्वास नहीं रखते थे। वे तो सभी वादों में से उसके सार तत्व को निकाल कर मानवता
के कल्याण के लिए उपयोग करते थे। वे जीवन भर सत्य का प्रयोग करते रहे। उनका सत्य
किसी एक सम्प्रदाय का सत्य नहीं था। सत्य के प्रति उनका दृष्टिकोण ज़रूर नया था। 1936 में गांधी सेवा संघ के सदस्यों को संबोधित
करते हुए महात्मा गांधी ने स्वयं कहा था, “गांधीवाद नाम की कोई वस्तु नहीं है। मैं अपने बाद कोई सम्प्रदाय
नहीं छोड़ना चाहता। मैंने कोई नया सिद्धांत नहीं चलाया है। केवल मैंने सच्चाई को
अपने दैनिक जीवन और समस्याओं पर प्रयोग करने का प्रयास किया है। आप इसे गांधीवाद
नहीं कहेंगे, क्योंकि इसमें कोई वाद नहीं है।” केवल एक अवसर पर, कराची अधिवेशन में 25 मार्च 1931 को गांधीजी ने कहा था, “गांधी मर सकता है परन्तु गांधीवाद सदा जीवित रहेगा।” परन्तु इस कथन से
गांधीजी का मतलब कोई वाद (ism) नहीं बल्कि सत्य और अहिंसा था। डॉ. पट्टाभि सीतारमैया ने इसे स्पष्ट
करते हुए कहा था, “गांधीवाद सिद्धांतों, वादों, नियमों और आदर्शों का संग्रह नहीं वरन् जीवनयापन की एक शैली या
जीवन दर्शन है।” गांधीजी ने
सिद्धांत रूप में जिन विचारों को अभिव्यक्ति दी है, उन्हीं को ‘गांधीवाद’ कहा जाता है। गांधी-विचारधारा का
नाम ही गांधीवाद है। गांधीजी के सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह
के सिद्धांत पर चलकर आज अनेकों बेमिसाल संघर्ष
के उदाहरण हमारे सामने हैं। लोग कहते हैं आज गांधीजी भुला दिए गए हैं। जब हम इरोम
शर्मिला, अन्ना हजारे और
सुंदरलाल बहुगुणा जैसे लोग और उनका सत्याग्रह देखते हैं तो हमें हैली सेलेसी का
कथन याद आता है, “जब तक स्वतंत्रता और न्याय के चाहने वाले लोग रहेंगे, तब तक महात्मा गाँधी को सदा याद किया जायेगा।”
”नकल न करने की ठानी
गांधीजी के दर्शन उनके जीवन को कई
छोटी-बड़ी घटनाओं में देखने को मिलता है। ऐसी ही एक घटना उनके स्कूल जीवन की है। राजकोट में स्कूल का निरीक्षण करने इंस्पेक्टर जाइल्स का अगमन हुआ। बड़ी ज़ोर-शोर से तैयारी
की गई। तेज़ छात्रों को आगे की बेंच पर बिठाया गया था। इंस्पेक्टर को प्रिंसिपल बारी-बारे
से हर कक्षा में ले जा रहे थे। जब वे गांधीजी की कक्षा में पहुंचे तो वर्तनी की जांच के लिए जाइल्स
ने छात्रों को पांच शब्द लिखने को कहा। उनमें से एक शब्द
था ‘केटल’ (Kettle)।
गांधीजी को इस शब्द की स्पेलिंग ठीक से मालूम नहीं थी। गांधीजी ने उसका हिज्जे ग़लत लिखा था। शिक्षक ने बूट की ठोकर मार कर इशारा करके उन्हें
बगल के छात्र की स्लेट से नकल करने को कहा। गांधीजी ने ऐसा नहीं किया। दूसरे सभी लड़कों
की स्पेलिंग सही थी। केवल गांधीजी की ही ग़लत थी। जब इंस्पेक्टर चले गए तो अध्यापक ने
गांधीजी को डांट लगाई। लेकिन बेईमानी गांधीजी के स्वभाव के ख़िलाफ़ थी। उनका मानना था
कि बेईमानी और धोखेबाज़ी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिकती। उनका कहना था कि सबसे सीधा रास्ता
ही सबसे छोटा होता है।
अंग्रेज़ों की विस्तारवादी नीति
1878
के
बाद
भारत
सरकार
ने
भारत
की
सीमाओं
के
बाहर
कई
बड़े
सैनिक
अभियान
किए।
अनेक
लड़ाइयों
में
भारत
की
सेनाओं
का
इस्तेमाल
किया
गया।
इन
सैनिक
अभियानों
के
कारण
भारत
का
सैनिक
ख़र्च
तेज़ी
से
बढ़ा।
इससे
ने
केवल
भारतीय
जनता
पर
अतिरिक्त
आर्थिक
दबाव
पड़ा,
बल्कि
यह
राजनीतिक
नैतिकता
की
दृष्टि
से
भी
ग़लत
था।
आख़िर
जो
लड़ाइयां ब्रिटिश
साम्राज्य
के
विस्तार
और
उसके
आर्थिक
हितों
की
वृद्धि
के
लिए
लड़ी
जा
रही
थीं,
उनसे
भारत
की
जनता
को
क्या
मतलब
हो
सकता
था?
1878-80
के
दौरान
द्वितीय
अफ़ग़ान
युद्ध
लड़ा
गया।
सुरेन्द्रनाथ
बनर्जी
ने
कहा
था,
“यह
विशुद्ध
आक्रमण
है।
यह
उन
सर्वाधिक
अन्यायपूर्ण
युद्धों
में
से
एक
है,
जिन्होंने
इतिहास
को
गंदला
किया
है।
चूंकि
यह
अन्यायपूर्ण
युद्ध
ब्रिटेन
के
साम्राज्यवादी
लक्ष्यों
और
नीतियों
के
तहत
छेड़ा
गया
है,
अतः
उसे
ही
इसका
ख़र्च
उठाना
चाहिए।”
*** *** ***
मनोज कुमार
गांधी और गांधीवाद : 1. जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि, गांधी और गांधीवाद 2. लिखावट, गांधी और गांधीवाद 3. गांधीजी का बचपन,
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