शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

26 जुलाई, कारगिल विजय दिवस

 

26 जुलाई, कारगिल विजय दिवस

भारत में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। 1999 में इसी दिन पाकिस्तान के साथ   कारगिल युद्ध शुरू हुआ था जो लगभग 60 दिनों तक चला था और 26 जुलाई के दिन उसका अंत हुआ और इसमें भारत की जीत हुई। युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों के सम्मान हेतु यह दिवस मनाया जाता है।

समझौता एक्सप्रेस

दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया था। स्थिति को सामान्य बनाने के लिए दोनों देशों के प्रधानमंत्री ने फरवरी 1999 में लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए। फरवरी 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच बस सेवा शुरू हुई। इस बस को समझौता एक्सप्रेस कहा गया। इस बस पर सवार होकर उस समय के भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर पहुंचे। इस बस में प्रधानमंत्री वाजपेयी के साथ देव आनंद, सतीश गुजराल, जावेद अख्तर, कुलदीप नैयर, कपिल देव, शत्रुघ्न सिन्हा और मल्लिका साराभाई जैसी भारतीय हस्तियां सवार थीं। लोगों ने यह माना कि दोनों देशों के बीच अमन-चैन की एक नई शुरुआत हुई है। नवाज शरीफ और अटल बिहारी वाजपेयी ने 21 फरवरी, 1999 को  लाहौर समझौता किया लेकिन ढाई महीने के भीतर ही जनरल परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध छेड़कर समझौते को ना केवल तोड़ा बल्कि विश्वासघात भी किया। जब नवाज शरीफ ने जनरल परवेज मुशर्रफ के इस क़दम का विरोध किया तो, मुशर्रफ ने तब शरीफ को सैन्य तख्ता पलट के बाद पीएम की कुर्सी से हटाकर खुद देश के प्रमुख बन गए थे।

लाहौर घोषणापत्र क्या था

ये भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय समझौता और शासन संधि थी संधि की शर्तों के तहत, परमाणु शस्त्रागार के विकास और परमाणु हथियारों के आकस्मिक और अनधिकृत इस्तेमाल से बचने की दिशा में आपसी समझ बनी।  इस लाहौर घोषणापत्र में जम्मू कश्मीर को लेकर दोनों देशों ने सहमति दिखाई थी कि इस मुद्दे को शांतिपूर्ण तरीके से हल किया जाएगा।  इस समझौते में आतंकवाद पर लगाम लगाने को लेकर भी सहमति बनी। दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास का माहौल बने इस दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण क़दम था। किसे मालूम था कि एक ओर तो ये समझौता हो रहा है., दूसरी ओर पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ कुछ और ही साजिश करने में जुटे हैं। समझौता होने के बाद से मुशर्रफ के इशारे पर जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले में बड़े पैमाने पर पाकिस्तानी घुसपैठ हो रही थी। इस घुसपैठ का नाम "ऑपरेशन बद्र" रखा था। पाकिस्तान की सरकार तक को नहीं मालूम था कि मुशर्रफ क्या प्लान बना रहे हैं। पाकिस्तानी सेना का उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था। पाकिस्तानियों ने यह सोचा कि इस क्षेत्र में यदि तनाव बढ़ा, तो कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी। मामला इतना गंभीर हो गया कि मई में युद्ध छिड़ने की नौबत आ गई।  पाकिस्तान, खासकर मुशर्रफ, यह चाहता था कि भारत की सियाचिन ग्लेशियर की लाइफ लाइन NH 1 D को किसी तरह काट कर उस पर नियंत्रण किया जाए। पाकिस्तान ने कश्मीर और लद्दाख में नेशनल हाईवे-पर गोलाबारी भी की थी। पाकिस्तानी सैनिक उन पहाड़ियों पर आना चाहते थे जहां से वे लद्दाख की ओर जाने वाली रसद के लिए जाने वाले काफिलों की आवाजाही को रोक दें और भारत को मजबूर हो कर सियाचिन छोड़ना पड़े। दरअसल, मुशर्रफ को यह बात बहुत बुरी लगी थी कि भारत ने 1984 में सियाचिन पर कब्जा कर लिया था। उस समय वह पाकिस्तान की कमांडो फोर्स में मेजर हुआ करते थे। उन्होंने कई बार उस जगह को खाली करवाने की कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो पाए।



ऑपरेशन विजय

अब तक सिर्फ घुसपैठ मान रहे भारतीय सेना को अचानक पता चला कि पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय प्रशासित कश्मीर में न सिर्फ घुसपैठ की है, बल्कि बहुत बड़े पैमाने पर हमले की योजना बनाई गयी है। 5 मई, 1999 को जब भारतीय सेना गश्त पर निकली, तो पाकिस्तानी सेना द्वारा भारतीय सेना के पांच जवानों को बंधक बनाकर यातनाएं देकर मार दिया गया।
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मई 1999 को पाकिस्तान के कुछ  सैनिक कारगिल की आजम चौकी पर कब्जा जमाए बैठे हुए थे। उन्होंने देखा कि कुछ भारतीय चरवाहे कुछ दूरी पर अपने मवेशियों को चरा रहे थे। पाकिस्तानी सैनिकों ने आपस में इन चरवाहों को बंदी बनाने को लेकर चर्चा की, लेकिन जब उन्हें लगा कि ऐसा करने की सूरत में चरवाहे उनका राशन खा जाएंगे, तो उन्होंने उन्हें वहां से जाने दिया। इन स्थानीय चरवाहों ने भारतीय सेना को उस क्षेत्र में पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों की मौजूदगी के बारे में सचेत किया। कुछ देर बाद ये चरवाहे भारतीय सेना के 6-7 जवानों के साथ वहां वापस लौटे। भारतीय सैनिकों ने अपनी दूरबीनों से इलाक़े का मुआयना किया और चले गए। कुछ देर में एक हेलिकॉप्टर  से उस इलाके का मुआयना किया गया और तब पता चला कि बहुत सारे पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की पहाड़ियों की ऊँचाइयों पर क़ब्ज़ा जमा लिया है। इस तरह पाकिस्तान के नापाक इरादों की पोल खुल गई। कारगिल की चोटियों पर घुसपैठियों के भेष में बैठी पाकिस्‍तानी सेना पूरी तरह से यह मान चुकी थी कि उन तक भारतीय सेना का पहुंचना लगभग नामुमकिन सा है। यदि भारतीय सेना ने उन तक पहुंचने की कोशिश भी की तो, यह कोशिश उनके लिए खुदकुशी जैसी ही होगी। लेकिन भारतीय सेना के जांबाजों ने पाकिस्तानियों के मनसूबे पूरे नहीं होने दिए। 

पाकिस्तानी सेना के सैनिकों को बाहर निकालने और विवादित क्षेत्र पर फिर से कब्जा करने के लिए  भारत सरकार ने 2,00,000 सैनिकों को कारगिल क्षेत्र में भेजा। भारत-पाकिस्तान कारगिल युद्ध का कोड नाम ऑपरेशन विजय था। जनरल वेद प्रकाश मलिक  कारगिल युद्ध के दौरान सेना प्रमुख थे। उन्होंने 1999 में कारगिल-सियाचिन सेक्टर में पाकिस्तान की घुसपैठ की कोशिश को नाकाम करने के लिए भारतीय सेना के संघर्ष का नेतृत्व किया। मई 1999 में युद्ध शुरू हुआ। भारतीय सेना ने 18000 फीट की ऊंचाई पर खराब मौसम के बीच अपनी बहादुरी और शौर्य का परिचय दिया। भारतीय वायु सेना (IAF) ने 'ऑपरेशन सफेद सागर' शुरू किया और पाकिस्तानी ठिकानों पर हवाई हमले शुरू किए। वायु सेना की इस युद्ध में काफी मनोवैज्ञानिक भूमिका थी  पाकिस्तानी सैनिकों को जैसे ही ऊपर से भारतीय जेटों की आवाज सुनाई पड़ती, वे बुरी तरह घबरा जाते और इधर उधर भागने लगते। ठंडे इलाके में सेना को पर्याप्त उपकरण सामग्री नहीं मिल पाती थी। इसके बावजूद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को सीमा के बाहर खदेड़ दिया और सभी जगहों को अपने कब्जे में लेकर विजय पताका फहराई। आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को युद्ध समाप्त हुआ। इस युद्ध में बोफोर्स तोपों के सटीक हमलों ने पाकिस्तानी चौकियों को पूरी तरह तबाह कर दिया था। यह जीत भारतीय सेना की वीरता और साहस का प्रतीक है। कारगिल युद्ध भारतीय सेना के द्वारा लड़ी गई सबसे कठिन ऊंचाई वाले लड़ाइयों में से एक है। कारगिल संघर्ष के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में सैन्य हताहत हुए। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, लगभग 60 दिनों तक चले इस युद्ध के अंत में भारतीय हताहतों की संख्या 527 थी, 1,363 घायल हुए और 1 युद्धबंदी (फ़्लोर लेफ्टिनेंट के नचिकेता, जिनका मिग-27 एक स्ट्राइक ऑपरेशन के दौरान मार गिराया गया था)। हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने स्वीकार किया कि उनके देश ने 1999 के लाहौर घोषणापत्र का उल्लंघन किया है, जिस पर उन्होंने अपने भारतीय समकक्ष अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हस्ताक्षर किए थे।

उपसंहार

इस बार देश कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगाँठ मना रहा है। आज का दिन उन सैनिकों की बहादुरी को समर्पित है जिन्होंने भारत को जीत दिलाई थी, साथ ही यह उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का दिन है जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थेप्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ मनाने के लिए लद्दाख के द्रास का दौरा कर रहे हैं। द्रास दुनिया के सबसे ठंडे स्थायी रूप से बसे हुए स्थानों में से एक माना जाता है, जहाँ सर्दियों में तापमान -40 °C या उससे भी कम हो जाता है। कारगिल विजय दिवस की कई वीर गाथाएं भी हैं जिनमें कैप्टन विक्रम बतरा परमवीर चक्र (9 सितम्बर 1974 - 7 जुलाई 1999) की कहानी को हौसले और देशप्रेम के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। कैप्टन विक्रम बतरा ने कहा था, यह दिल मांगे मोर। कैप्टन विक्रम बतरा ने देश के लिए अपने प्राण गंवाए थे लेकिन अपने साथियों के साथ देश को जीत का तोहफा दे गए। देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए लड़ने वाले सैनिकों की बहादुरी और वीरता को कोटि-कोटि नमन!

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मनोज कुमार

 

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