शनिवार, 27 जुलाई 2024

25. बैरिस्टर बने पर वकालत की चिन्ता

 

गांधी और गांधीवाद

 

आपकी समस्त विद्वत्ता, आपका शेक्सपियर और वर्ड्सवर्थ का संपूर्ण अध्ययन निरर्थक है यदि आप अपने चरित्र का निर्माण विचारों क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते। -- महात्मा गांधी

 

 

25. बैरिस्टर बने पर वकालत की चिन्ता

प्रवेश

गांधीजी अपनी सीमाओं को जानते थे। उन्होंने कोई उल्लेखनीय विश्वविद्यालयी शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। हाई स्कूल तक वह कभी औसत से ऊपर का छात्र नहीं रहे। वह परीक्षा में पास हो जाते थे तो शुक्रगुजार होते थे। स्कूली परीक्षाओं में विशेष योग्यता प्राप्त करने की तो वह कल्पना भी नहीं कर सकते थे। बैरिस्टर बनने वह विलायत आए थे और बने भी। इसके बाद यह प्रश्न उनके सामने था – अब आगे क्या?

पेरिस यात्रा

1890 की प्रदर्शनी के समय गांधीजी ने पेरिस-यात्रा की थी। वह वहाँ के एक शाकाहारी होटल में ठहरे। गांधीजी पेरिस में सात दिन रहे। वहाँ पर देखने वाली हर चीज़ उन्होंने पैदल घूमकर देखी। प्रदर्शनी की विशालता और विविधता ने गांधीजी को आकर्षित किया। वे वहां के प्राचीन गिरिजा घरों, खासकर नोत्रे देम के गिरिजा घर से बहुत प्रभावित हुए। उनकी भव्यता, उनके अन्दर मिलने वाली शान्ति, इनकी कारीगरी और अन्दर की चित्रकारी को वह कभी नहीं भूल पाए। उनके मन में यह बात आई कि जिन लोगों ने ऐसे भव्य गिरिजा घर बनवाने पर करोड़ों रुपए ख़र्च किए हैं, उनके हृदय में ईश्वर प्रेम के अलावा और कोई भाव रहा ही नहीं होगा। एफिल टॉवर पर वह तो दो-तीन बार चढे। लेकिन इस टॉवर की इंजीनियरिंग गांधीजी को प्रभावित नहीं कर पाई। उन्होंने ने तॉल्सतॉय के कथन को दुहराते हुए कहा, यह मीनार मनुष्य की बुद्धिमत्ता नहीं, उसकी मूढ़ता का स्मारक है।

बैरिस्टर बने

उन दिनों क़ानून की परीक्षाएं मुश्किल नहीं हुआ करती थीं। प्रश्न सरल और परीक्षक उदार होते थे। अनुत्तीर्ण होने का डर नहीं के बराबर था। लगभग सारे विद्यार्थी पास हो जाया करते थे। यदि कोई विद्यार्थी सत्रों में उपस्थित (12 सत्र होते थे) रहता, तो लगभग 3 वर्षों के बराबर होते, तो वकालत की सदस्यता अपने आप ही मिल जाती। वर्ष में चार बार परीक्षा होती थी। वर्ष में जो चार सत्र होते थे उन सत्रों में उपस्थित रहना अनिवार्य था। उसमें दावत होती थी, जिसमें उपस्थित रहना ज़रूरी था। ऐसी दावतों में शराब भी चलती थी। शराब पीने के पीछे लोग इतना पैसा क्यों बरबाद करते थे, यह गांधी की समझ में नहीं आता था। शराब तो उनके काम की नहीं थी। वे रोटी, उबले आलू और गोभी से काम चलाते थे। 

परीक्षा काफ़ी सुविधा वाली थी। पर गांधी जी को बिना पढे परीक्षा देना धोखेबाज़ी लगी।ज़्यादातर विद्यार्थी पाठों को रट लिया करते थे। लेकिन गांधीजी को यह तरीक़ा अच्छा नहीं लगा। उन्हें लगा कि मूल पुस्तक तो पढ ही जानी चाहिए। उन्होंने मन लगाकर पढाई की। उन्होंने यूनानी क़ानून का अध्ययन किया। लैटिन भाषा में पूरा रोमन लॉ पढ़ा। ब्रूम के कॉमन लॉ का अध्ययन किया। स्नेल का इक्विटी’, ट्यूडर के लीडिंग केसेज और विलियम तथा एडवर्ड की रीयल प्रोपर्टी को पूरा-पूरा पढ़ा। क़ानून की परीक्षा में ज़रा भी लापरवाही नहीं बरती। एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया। पास भी हो गए। इस तरह 10 जून, 1891 को वह बैरिस्टर बन गए।

सार्वजनिक संभाषणमुश्किल का काम

सफेद फलालैन के कपड़े पहनकर जो अनुभवहीन लड़का एक दिन साउथपटन में उतरा था, वह लंदन में तीन वर्ष के इंग्लैंड के छात्र-जीवन के दौरान काफी परिपक्व हुआ था। उसके नैतिक और आध्यात्मिक क्षेत्र के साथ-साथ उसकी रुचियों और उसके अनुभवों के क्षेत्रों में भी बहुत अधिक विकास हुआ। विचार तो उसके निरंतर विकसित हो रहे थे, लेकिन उसके जन्मजात संकोच से उसे छुटकारा नहीं मिला था। कई महत्त्वपूर्ण अवसर पर उसकी घबराहट उसकी हार का कारण बन जाती थी। अपने एक मित्र मजुमदार के साथ मई 1891 में बैटनर में शाकाहार पर हुए एक सम्मेलन में गांधीजी भाग लेने पहुंचे। उन्होंने इस सम्मेलन में पढ़ने के लिए एक भाषण तैयार किया था। भाषण बमुश्किल एक पन्ने का था। लेकिन जब वे पढ़ने के लिए खड़े हुए तो उनकी नज़र धुंधला गई। शरीर कांपने लगा। गला सूख गया। मुंह से आवाज़ नहीं निकली। उनका यह भाषण मजुमदार को पढ़ना पड़ा। यह लज्जाशीलता उनके पूरे इंग्लैंड प्रवास के दौरान बनी रही। जब भी किसी सामाजिक शिष्टाचार के नाते किसी से मिलने जाते जाते तो छह-सात लोगों की मौज़ूदगी उन्हें गूंगा बना देती। सार्वजनिक संभाषण उनके लिए बेहद मुश्किल का काम था।

वकालत की चिन्ता

कानून तो गांधीजी पढ़ चुके थे, पर ऐसी कोई भी चीज उन्होंने नहीं सीखी थी, जिससे वकालत कर सकते। पढ़े हुए कानूनों में भारत के कानून का तो नाम तक न था। इसलिए अब उन्हें यह चिन्ता सताए जा रही थी कि किस तरह वकालत कर पाएंगे? वे बहुत शर्मीले थे। चार आदमियों के बीच तो उनसे बोलते नहीं बनता, अदालत में जिरह क्या कर पाएंगे? क़ानून तो पढे पर वकालत करना नहीं सीखा। पढे हुए क़ानून में हिन्दुस्तान के क़ानून का तो नाम तक न था। वे यह नहीं जान पाए कि हिन्दू शास्त्र और इस्लामी क़ानून कैसे हैं? न ही उन्होंने अर्ज़ी-दावा तैयार करना सीखा था। वे बहुत परेशान हुए। उन्हें उस समय के महान वकील फीरोजशाह मेहता की तरह बनना था। वह अदालतों में शेर की तरह दहाड़ते थे। ऐसे धाकड़ वकीलों के सामने पड़ जाने पर उनकी जो दुर्गति होगी, उसकी कल्पना वह सहज ही कर सकते थे। किसी से सलाह मशविरा करना उन्हें ज़रूरी लगा। उन दिनों महान देशभक्त और वकील दादा भाई नौरोजी इंग्लैंड में ही थे। लेकिन वह उनसे मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। अंत में वह एक अंग्रेज़ वकील के पास गए। उसने बताया कि फीरोजशाह मेहता या बदरूद्दीन तैयबजी तो एक-दो ही होते हैं। साधारण वकील बनने के लिए बहुत अधिक होशियारी की ज़रूरत नहीं होती। उसने सलाह दी कि विभिन्न विषयों को खूब पढ़ो, इतिहास का अपना ज्ञान बढ़ाओ और मानव स्वभाव का अध्ययन करो। उच्च कोटि की विलक्षणता, अच्छी याददाश्त और पूरी क़ाबिलीयत से ही इस पेशे में सफलता मिल सकती है, ऐसी बात नहीं है। ईमानदारी और मेहनत से काम करने वाले भी तरक्क़ी कर सकते हैं। गांधीजी ने उनकी सलाह गांठ बांध ली। चेहरा देखकर आदमी को परखने की कला सीखनी थी। इसके लिए बाज़ार से मुखाकृति विज्ञान पर एक किताब ख़रीद लाए। उसका अध्ययन करने लगे।

उपसंहार

मुखाकृति विज्ञान आदि पढ़ने से गांधीजी को कोई ख़ास फायदा न होने वाला था, न हुआ। पर एक बात तो वह समझ गए ही थे कि वकालत करने के लिए फीरोज शाह मेहता की होशियारी औऱ याददाश्त वगैरा की ज़रूरत नहीं थी; प्रामाणिकता और लगन से काम चल जाएगा। इन दो गुणों की गांधीजी में कोई कमी नहीं थी।

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मनोज कुमार

पिछली कड़ियां

गांधी और गांधीवाद : 1. जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि, गांधी और गांधीवाद 2. लिखावट, गांधी और गांधीवाद 3. गांधीजी का बचपन, 4. बेईमानी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिकती, 5. मांस खाने की आदत, 6. डर और रामनाम, 7. विवाह - विषयासक्त प्रेम 8. कुसंगति का असर और प्रायश्चित, 9. गांधीजी के जीवन-सूत्र, 10. सच बोलने वाले को चौकस भी रहना चाहिए 11. भारतीय राष्ट्रवाद के जन्म के कारक 12. राजनीतिक संगठन 13. इल्बर्ट बिल विवाद, 14. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उदय, 15. कांग्रेस के जन्म के संबंध में सेफ्टी वाल्व सिद..., 16. प्रारंभिक कांग्रेस के कार्यक्रम और लक्ष्य, 17. प्रारंभिक कांग्रेस नेतृत्व की सामाजिक रचना, 18. गांधीजी के पिता की मृत्यु, 19. विलायत क़ानून की पढाई के लिए, 20. शाकाहार और गांधी, 21. गांधीजी ने अपनाया अंग्रेज़ी तौर-तरीक़े, 22. सादगी से जीवन अधिक सारमय, 23. असत्य के विष को बाहर निकाला, 24. धर्म संबंधी ज्ञान

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