शनिवार, 31 अगस्त 2024

60. महामारी में सेवा

 गांधी और गांधीवाद

 

मेरी अस्पृश्यता के विरोध की लडाई, मानवता में छिपी अशुद्धता से लडाई है। - महात्मा गांधी

60. महामारी में सेवा

राजकोट जुलाई 1896

बम्बई (मुंबई) में ब्यूबोनिक प्लेग

गांधीजी इस समय सत्ताईस वर्ष के थे। उन्हें पता लगा कि बम्बई (मुंबई) में ब्यूबोनिक प्लेग की महामारी फूट पड़ी। राजकोट में भी ताऊन के फूट पड़ने का डर सामने था। चारों तरफ़ घबराहट फैल गई। पूरे पश्चिम भारत में आतंक छा गया। राजकोट में जब खलबली मची तो यह आवश्यक हो गया कि वहां निवारक उपाय किए जाएं। गांधीजी ने हर बार की तरह इस बार भी सरकार को आरोग्य विभाग में अपनी सेवाएं अर्पित करने की इच्छा, पत्र द्वारा जता दी। उन्हें सनिटरी विजिटर्स कमिटी का सदस्य बना दिया गया। वे सार्वजनिक सेवा कार्य में जुट गए। सफ़ाई की सुचारु व्यवस्था में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। राजकोट नगर की आरोग्य रक्षा के लिए उन्होंने घर-घर और घर-बाहर की सफ़ाई का कार्यक्रम अपनाया। उन्हें यह काफ़ी रुचिकर काम लगा। गांधीजी ने शौचालय की सफ़ाई पर ज़ोर दिया उन्होंने कहा कि यही वह जगह है जो इस बीमारी के फैलने का घर है।

शौचालयों का निरीक्षण

कमेटी ने निश्चय किया कि गली-गली जाकर शौचालयों का निरीक्षण किया जाए। पहली बार गांधीजी को भारतीय घरों में शौचालयों और सफ़ाई व्यवस्था को देखने का मौक़ा मिला था। उन्होंने नगर की हर गली के शौचालयों का मुआयना किया। स्वास्थ्य विभाग को अपनी सलाह दी। उन्होंने कहा, ‘स्वच्छ शौचालय घर को स्वच्छ रखता है। सभ्य जीवन की कसौटी यही है।’ अपने दौरों में उन्हें पता चला कि समृद्ध लोगों के घर, अत्यंत ग़रीब लोगों और विशेषकर अछूतों (जैसा कि उन्हें उन दिनों कहा जाता था) के घरों की तुलना में, कम साफ़ थे। उन दिनों राजकोट में निजी घरों में स्वच्छता व्यवस्था दुःस्वप्न जैसी थी। उन्होंने वहां जो देखा, वह उन्हें भयभीत करने के लिए काफी था। अछूतों को पहली बार उन्होंने उनके घरों में देखा। ग़रीब लोगों ने अपने शौचालय का निरीक्षण करने देने में बिल्कुल आनाकानी नहीं की। कुछ धनाढ्य लोगों के शौचालयों और मूत्रालयों के बारे में उन्होंने लिखा है कि उच्चतम वर्ण के हिन्दू, ऐसी स्थायी सड़ांध में रह, खा और सो सकते होंगे, ऐसा सोचा न था। समिति ने जिस घर का दौरा किया, उसके दो मंजिला बेडरूम में इतनी बदबू थी कि "यह आश्चर्य की बात थी कि कोई भी उस कमरे में सो सकता है"। कई लोगों ने तो घरों का मुआयना करने की इज़ाज़त तक न दी। उनके शौचालय अधिक गंदे थे, उनमें अंधेरा था, कुड्डी पर कीड़े बिलबिलाते थे। जीते-जी रोज़ नरक में प्रवेश करने जैसी स्थिति थी। संपन्न लोगों के शौचालय सबसे गंदे थे। वे अपने सुधार के सुझावों के प्रति सबसे अधिक प्रतिरोधी भी थे। परिणामस्वरूप, उस संबंध में समिति की कई सिफारिशें एक मृत पत्र बनकर रह गईं।

भंगी बस्ती में

"अछूतों" (जैसा कि उन्हें उन दिनों कहा जाता था) की बस्ती का निरीक्षण का विचार चुनौतीपूर्ण समस्या बन गई। समिति के सदस्यों ने शौचालय-सफाई करने वालों के शौचालयों के निरीक्षण को "सरासर बकवास" माना। लेकिन कमेटी भंगी बस्ती में भी गई। गांधीजी के साथ सिर्फ़ एक सदस्य गया, अन्य कोई गण्य-मान्य व्यक्ति नहीं गया। अन्य सदस्यों को लगा कि वहां जाना अनर्थक है। पर गांधीजी को भंगियों की बस्ती देखकर सानन्द आश्चर्य हुआ। यह गांधीजी की ऐसी जगह की पहली यात्रा थी। उन्हें बहुत अच्छा लगा। सफाईकर्मियों ने किस तरह एक पूर्व दीवान के बेटे का स्वागत किया! पुरुष और महिलाएं खुशी से दबी आवाज में बोल रहे थे। भंगी लोगों को भी गांधीजी को वहां देख कर अचम्भा हुआ। जब गांधीजी ने शौचालय देखने की इच्छा ज़ाहिर की तो उनमें से एक ने कहा, “हमारे यहां शौचालय कैसे? हमारे शौचालय तो जंगल में हैं। शौचालय तो आप बड़े आदमियों के यहां होते हैं।

गांधीजी ने पूछा, “तो क्या आप अपने घर हमें देखने देंगे?”

आइए न भाई साहब! जहां भी आपकी इच्छा हो, जाइये। ये ही हमारे घर हैं।

जब वे अन्दर गए और घर तथा आंगन की सफ़ाई देखा तो ख़ुश हो गए। प्रवेश द्वार अच्छी तरह से साफ किए गए थे, मिट्टी के फर्श पर गोबर और मिट्टी से चिकनी लिपाई की गई थी। आंगन झाड़ा-बुहारा था। बरतन चमचमा रहे थे। गांधीजी ने अपने समिति के सहयोगियों से कहा, "उन इलाकों में प्रकोप का कोई डर नहीं है।"

वैष्णव मंदिर में

समिति के सदस्य उस वैष्णव मंदिर भी गए, जहां उनकी मां पुतली बाई देव-दर्शन के लिए नित्य-नियम से जाती थीं। वहां गए बिना मां अन्न ग्रहण नहीं करती थीं। मंदिर के पुजारी ने उनका स्वागत किया। मंदिर के अहाते का कोना-कोना उन्होंने देखा। उन्होंने पाया कि भक्तों द्वारा खाने की थाली में इस्तेमाल किए जाने वाले कूड़े-कचरे और पत्तों को एक कोने में फेंक दिया गया था, जिसे मंदिर बनने के बाद से कभी साफ नहीं किया गया था। यह देख कर उन्हें दुख हुआ। उस जगह पर चील और कौओं का झुंड मंडरा रहा था - मक्खियों और बदबू का तो जिक्र करना भी ज़रूरी नहीं है। यह किसी को भी बीमार कर देने के लिए काफी था। देव भूमि के आंचल में ही कूड़ाघर बन गया था। इस तरह के पवित्र स्थल पर तो आरोग्य के नियमों का अधिक से अधिक पालना होने की आशा रखी जाती है। हिंदू धर्म में साफ-सफाई को एक अनुष्ठान के रूप में माना जाता है। गांधीजी को यह देखकर दुख हुआ कि जिस देश की सदियों से प्रथा रही हो अपना अंदर-बाहर को स्वच्छ रखने की, वहां के लोग इस विषय में इतने असावधान और उदासीन हो गए हैं। साफ-सफाई  की इतनी घोर अवहेलना ने गांधीजी को बहुत दुखी किया और उन्हें पूरे भारत में हिंदुओं के पवित्र स्थलों की पूरी तरह से शारीरिक और नैतिक सफाई करने का संकल्प दिलाया।

उपसंहार

सार्वजनिक सेवा गांधीजी की राजनीति का मुख्य अंग थी। वे जनसेवा और देवाराधना में कोई व्यवधान न देखते थे। उनकी ईश्वरभक्ति जनता जनार्दन की सेवा थी। साफ-सफाई उनके मानवतावादी दृष्टिकोण की मूलभूत पवित्रता की पहचान थी। सफ़ाई की सुचारु व्यवस्था कार्यक्रम में उनकी सक्रिय भागीदारी ने उन्हें स्वच्छता कार्य से परिचित कराया जो बाद में उनके लिए गहरी रुचि का विषय बन गया। निरीक्षण के दौरान उन्होंने पाया कि ‘अछूतों के घर सबसे साफ-सुथरे थे। सबसे गंदे शौचालय ‘ऊपर के दस’ घरों में थे जहां बेरुखी से उन्हें जाने से रोक दिया गया था। भारतीय समाज के अपने सुधार कार्य में उन्हें भविष्य में भी कई बड़े लोगों के कम सहयोग और अधिक प्रतिरोध का अनुभव हुआ। बाद के दिनों में जब उन्होंने सुधार कार्यक्रमों को हाथ में लिया तो अपने सहकर्मियों से मल-मूत्र की टंकियों को साफ़ करने को कहते। उनका मानना था कि यह जातिप्रथा की जकड़न से हमें आज़ाद करेगा। उनका यह भी मानना था कि कोई काम खराब नहीं होता। बाद के वर्षों में जब भी गांधीजी किसी आवासीय संस्थान में जाते थे तो सबसे पहले शौचालयों और फिर रसोई का निरीक्षण करते थे। उनका कहना था कि इससे उन्हें किसी भी संस्थान के काम का बेहतर मूल्यांकन करने में मदद मिलती थी।

***         ***    ***

मनोज कुमार

संदर्भ :

1

सत्य के प्रयोग – मो.क. गाँधी

2

बापू के साथ – कनु गांधी और आभा गांधी

3

Gandhi Ordained in South Afrika – J.N. Uppal

4

गांधीजी एक महात्मा की संक्षिप्त जीवनी – विंसेंट शीन

5

महात्मा गांधीजीवन और दर्शन – रोमां रोलां

6

M. K. GANDHI AN INDIAN PATRIOT IN SOUTH AFRICA by JOSEPH J. DOKE

7

गांधी एक जीवनी, कृष्ण कृपलानी

8

गाांधी जीवन और विचार - आर.के . पालीवाल

9

दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास, मो.क. गाँधी

10

The Life and Death of MAHATMA GANDHI by Robert Payne

11

गांधी की कहानी - लुई फिशर

12

महात्मा गाांधी: एक जीवनी - बी. आर. नंदा

13

Mahatma Gandhi – His Life & Times by: Louis Fischer

14

MAHATMA Life of Mohandas Karamchand Gandhi By: D. G. Tendulkar

15

MAHATMA GANDHI By  PYARELAL 

16

Mohandas A True Story of a Man, his People and an Empire – Rajmohan Gandhi

17

Catching up with Gandhi – Graham Turner

18

Satyagraha – Savita Singh

 

पिछली कड़ियां- गांधी और गांधीवाद

शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

59. महारानी विक्टोरिया का हीरक जयंती समारोह

 गांधी और गांधीवाद

 

साहस कोई शारीरिक विशेषता होकर आत्मिक विशेषता है। - महात्मा गांधी

59. महारानी विक्टोरिया का हीरक जयंती समारोह

राजकोट - जुलाई 1896

राजनिष्ठा

गांधीजी को अभी भी विश्वास था कि ब्रिटिश शासन पूरी दुनिया के लिए फायदेमंद है। हालाकि वे ब्रिटिश राजनीति में दोष देखते थे, फिर भी कुल मिलाकर उनकी नीति उन दिनों गांधीजी को अच्छी लगती थी। वे मानते थे कि ब्रिटिश शासन और शासकों का रुख़ जनता का पोषण करने वाला है। उनकी दृष्टि में भारत की समस्याओं का हल पारस्परिक संबंधों को सुधारने और परस्पर समझदारी और सद्भावना बढ़ाने से संभव था। गांधीजी की राजनिष्ठा शुद्ध थी। उन दिनों वे ब्रिटिश शासन के प्रति पूर्ण सद्भावना रखते थे। उनकी राजनिष्ठा की जड़ें सत्य पर उनके स्वाभाविक प्रेम में निहित थी। सवाल राजनिष्ठा का हो या किसी अन्य वस्तु का स्वांग भरना उनकी प्रकृति में नहीं था। नेटाल में जब वे किसी सभा में जाते, तो वहांगॉड सेव द किंग (ईश्वर राजा की रक्षा करे) गीत अवश्य गाया जाता था। उन्हें यह लगता कि उन्हें इसे गाना चाहिए। वे गाते थे। राजकोट में भी उन्होंने इसे अपने बेटों, आठ साल के हरिलाल और चार साल के मणिलाल और संयुक्त परिवार के दो अन्य बच्चों को सिखाया। ब्रिटिश राजनीति में दोष तो वह तब भी देखते थे, फिर भी कुल मिलाकर उन्हें वह नीति अच्छी लगती थी। उस समय वह मानते थे कि ब्रिटिश शासन और शासकों का रुख कुल मिलाकर जनता का हित करने वाला है। इसलिए सिंहासन के प्रति अपनी वफादारी को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने का कोई मौका नहीं छोड़ा।

इसके उलट दक्षिण अफ़्रीका में वे वर्ण-द्वेष देखते थे। वे मानते थे कि दक्षिण अफ़्रीका में प्रवासी भारतीयों की समस्या सामयिक और स्थानीय है और ब्रिटिश संविधान और ब्रिटिश परंपरा की भावना के प्रतिकूल था। उन्होंने अंग्रेज़ों के राष्ट्रगीत लगन के साथ सीख ली थी और नेटाल इंडियन कान्ग्रेस और अन्य सभाओं में गॉड सेव द किंग गाया जाता तो वे भी अपना सुर उसमें मिलाया करते। बिना किसी आडंबर के जब भी कभी राजनिष्ठा प्रदर्शित करने का मौक़ा मिलता, सत्ताईस वर्षीय गांधीजी ज़रूर करते। पर अपनी इस राजनिष्ठा को उन्होंने कभी नहीं भुनाया। व्यक्तिगत लाभ उठाने का तो विचार कभी भी उनके मन में नहीं आया। राजभक्ति को वे ऋण मानकर हमेशा उसे चुकाया ही। सब मिलाकर, वे ब्रिटिश साम्राज्य को अकल्याणकारी नहीं मानते थे।

हीरक जयंती समारोह की तैयारियां

जब गांधी राजकोट पहुंचे तो महारानी विक्टोरिया के सम्राज्ञी पद की हीरक जयंती समारोह की तैयारियां बड़े ज़ोर-शोर से चल रही थी। इस अवसर को भव्य तरीक़े से मनाए जाने की योजना थी। उसके लिए राजकोट में भी एक समिति बनी। वे एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिसे ब्रिटिश राष्ट्रगीत आता था, इसलिए सिंहासन के प्रति निष्ठा के कारण अंग्रेज़ों के तुल्य समानता देते हुए गांधीजी को राजकोट में समिति का इंचार्ज बनाया गया। चूंकि वे वहां ब्रिटिश राष्ट्रगान जानने वाले एकमात्र व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने स्थानीय छात्रों को इसके गायन के लिए प्रशिक्षित करने का काम दिया गया। गांधीजी ने यह दायित्व स्वीकार तो कर लिया, लेकिन उन्हें उसमें दम्भ का दर्शन हुआ। दिखावा बहुत होता था, जो गांधीजी को बिल्कुल ही पसंद नहीं था। समिति में रहें या न रहें इस दुविधा में वे घिर गए। पर वचन के पक्के गांधीजी ने निश्चय किया कि अपने कर्तव्य का पालन करेंगे।

सार्वजनिक सेवा गांधीजी की राजनीति का मुख्य अंग थी। इस कार्यक्रम के तहत वृक्षारोपण भी रखा गया। इसमें भी दम्भ और दिखावा ही ज़्यादा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह सिर्फ़ साहबों को ख़ुश करने के लिए किया जा रहा हो। गांधीजी तो इस मत के थे कि अगर वृक्ष लगाना है तो दिल से लगाया जाए, दबाव से नहीं। पर कहीं लोग उनके इस विचार पर उनकी हंसी न उड़ाएं, यह सोच कर गांधीजी ने अपने मन की बात मन में ही रखी और अपने हिस्से के पेड़ लगा कर संतुष्ट हुए।

गॉड सेव द किंग गीत वे अपने परिवार वालों को सिखाते थे। सातवें एडवर्ड के राज्यारोहण के अवसर पर उन्होंने इस गीत को ट्रेनिंग कॉलेज के विद्यार्थियों को भी सिखाया था। बाद में यह गाना उन्हें खटका। उनकी आत्मा ने राष्ट्रगान के कुछ पहलुओं के खिलाफ विद्रोह किया। खास कर इसकी निम्न पंक्तियां उनके अहिंसावादी विचारधारा के विपरीत थीं,

उसके   शत्रुओं   का   नाश    कर,

उनके षडयंत्रों को विफल कर।

उन्हें लगा कि यह गाना अहिंसक लोगों को शोभा नहीं देता। शत्रु कहलाने वाले दग़ा ही देंगे यह कैसे मान लिया जाए। यह कैसे कहा जाए कि शत्रु बुरे ही होंगे। ईश्वर से तो न्याय ही माँगा जा सकता है।

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मनोज कुमार

संदर्भ :

1

सत्य के प्रयोग – मो.क. गाँधी

2

बापू के साथ – कनु गांधी और आभा गांधी

3

Gandhi Ordained in South Afrika – J.N. Uppal

4

गांधीजी एक महात्मा की संक्षिप्त जीवनी – विंसेंट शीन

5

महात्मा गांधीजीवन और दर्शन – रोमां रोलां

6

M. K. GANDHI AN INDIAN PATRIOT IN SOUTH AFRICA by JOSEPH J. DOKE

7

गांधी एक जीवनी, कृष्ण कृपलानी

8

गाांधी जीवन और विचार - आर.के . पालीवाल

9

दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास, मो.क. गाँधी

10

The Life and Death of MAHATMA GANDHI by Robert Payne

11

गांधी की कहानी - लुई फिशर

12

महात्मा गाांधी: एक जीवनी - बी. आर. नंदा

13

Mahatma Gandhi – His Life & Times by: Louis Fischer

14

MAHATMA Life of Mohandas Karamchand Gandhi By: D. G. Tendulkar

15

MAHATMA GANDHI By  PYARELAL 

16

Mohandas A True Story of a Man, his People and an Empire – Rajmohan Gandhi

17

Catching up with Gandhi – Graham Turner

18

Satyagraha – Savita Singh

 

पिछली कड़ियां- गांधी और गांधीवाद