मंगलवार, 6 अगस्त 2024

35. धार्मिक विचारों पर चर्चा

 गांधी और गांधीवाद

विश्व के सारे महान धर्म मानव जाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं। - महात्मा गांधी

जून 1893

35. धार्मिक विचारों पर चर्चा

प्रवेश

गांधीजी की हिन्दू धर्म में आस्था थी। इस धर्म के बारे में उनकी जानकारी सीमित थी। वे इस जानकारी को बढ़ाना चाहते थे। वह पाप के परिणाम से मुक्ति नहीं चाहते थे। वह तो पाप-वृत्ति से, पाप-कर्म से मुक्ति चाहते थे। उनका कहना था जब तक वह मुक्ति नहीं मिलती, तब तक अपनी यह अशांति उन्हें प्रिय रहने वाली थी। वह हृदय-शुद्धि में विश्वास रखते थे। सेवा, कर्तव्य, ईश्वर - ये शब्द गांधीजी के होंठों से कभी दूर नहीं थे। उनके पास अपनी खोजबीन के लिए दक्षिण अफ्रीका में पर्याप्त समय था। एक तरफ अफ्रीका के अंग्रेज अधिकारियों का काले एशियाई लोगों से जानवरों से भी बदतर व्यवहार था। दूसरी तरफ कुछ बेहतर ईसाई धर्म प्रचारक ईसाई धर्म को दुनिया के सर्वोत्तम धर्म के रूप में प्रचारित करते थे।

अमेरिकी की मदद से होटल में ठहरे

काफी कष्टदायी पांच दिनों की यात्रा के बाद 4 जून 1893 को शाम के क़रीब आठ बजे गाड़ी प्रिटोरिया स्टेशन पहुंच गई। स्टेशन पर कोई प्रवासी भारतीय उन्हें लेने नहीं पहुंचा था। उन्होंने अब्दुल्ला सेठ को किसी भारतीय के यहां नहीं ठहरने का वचन दिया था। जिस दिन गांधी जी वहां पहुंचे थे, वह रविवार था। इसलिए लोगों को स्टेशन आने में असुविधा हुई होगी। अब उनके सामने समस्या थी कि कहां जाएं? स्टेशन पर धीमी रोशनी वाली बत्तियां जल रही थीं और इक्का-दुक्का यात्री ही स्टेशन पर थे। अपमान के डर से किसी से कुछ पूछने का उनका मन नहीं हो रहा था। स्टेशन के धीमे प्रकाश में वे खड़े थे और सोच रहे थे कि क्या किया जाए, कहां जाया जाए? वे टिकट कलेक्टर के पास गए और उसे अपनी समस्या बताई, “क्या आस-पास कोई छोटा-मोटा होटल होगा, जहां मैं एक रात बिता सकूं। पर उसने कोई मदद नहीं की। ईश्वर की कृपा से वहां पर एक अमेरिकी हब्शी खड़ा था। उसने ही बातचीत की पहल की। उसने कहा, “शायद आप यहां के लिए अनजान और अजनबी हैं। मुझे एक छोटे से होटल के बारे में मालूम है, जहां आपको जगह मिल जाएगी। आप मेरे साथ चलें, मैं आपको उस होटल में ले चलूंगा। शुरु में तो गांधीजी को शक हुआ पर उन्होंने उसके साथ जाना स्वीकार कर लिया। वह गांधीजी को जॉन्सटन फैमिली होटल ले गया। उसने होटल के मालिक जॉन्सटन से बात की। जॉन्सटन कमरा देने के लिए तो राज़ी हो गया लेकिन उसने एक शर्त लगा दी कि उन्हें भोजन कक्ष में नहीं बल्कि अपने कमरे में ही भोजन करना होगा, क्योंकि हो सकता था कि भोजन-गृह में गांधीजी को देख कर गोरे ग्राहक बुरा मान लेते। उसकी कठिनाई को समझते हुए गांधीजी रहने को राज़ी हो गए। अपने कमरे में एकांत बैठे गांधी जी विचार मग्न थे कि इतने में जॉन्सटन ने खुद ही आकर उन्हें बताया कि उसने ग्राहकों से बात की, उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी। इस प्रकार भोजन गृह में जाकर गांधीजी ने भोजन किया।

वकील से मिले

होटल में रात बिताकर दूसरे दिन 5 जून, 1893 को गांधीजी अब्दुल्ला सेठ के वकील अलबर्ट डब्ल्यू. बेकर से मिले। वह पादरी भी थे और वे ईसाई धर्म के लिए प्रचार करते थे। वह गांधीजी से प्रेमपूर्वक मिले। उन्होंने बताया कि बैरिस्टर के नाते तो गांधीजी का उस केस में कोई उपयोग नहीं हो सकता। बड़े-बड़े बैरिस्टर उसने केस के लिए किए हुए हैं। मुकदमा काफ़ी दिनों से चल रहा है, उसमें पेच भी ढेर सारे हैं। इसलिए गांधीजी से आवश्यक तथ्य आदि जुटाने और पत्राचार का काम ही लिया जाएगा।

रंगभेद के कारण घर मिलना आसान नहीं

बेकर ने यह भी बताया कि रंगभेद के कारण वहां घर मिलना आसान नहीं रहेगा। पर वे एक महिला को जानते थे। गांधी जी को लेकर उसके घर गए। मकान-मालकिन गोरी नस्ल की वृद्ध महिला थी। उसका पति बेकर का काम करता था। हफ़्ते के पैंतीस शिलिंग पर ठहरने और खाने की व्यवस्था हो गई। गांधीजी होटल से सामान लेकर यहीं आ गए। गांधीजी ने शाकाहार का प्रबंध करने को कहा। शाकाहार की बात सुनकर बेकर की दिलचस्पी बढ़ी।

धार्मिक विचारों पर चर्चा

बेकर वकील थे और कट्टर पादरी भी थे। बेकर ने गांधीजी से उनके धार्मिक विचारों पर चर्चा की। बेकर यह जानकर खुश हुआ कि गांधीजी न सिर्फ़ अपने हिन्दू धर्म का अध्ययन गंभीरता से करना चाहते हैं बल्कि दूसरे धर्मों का अध्ययन भी करने का उनका इरादा है। बेकर गांधीजी को ईसाई बनाने को बहुत उत्सुक था। गांधीजी का कहना था, “जब तक मैं अपने धर्म को पूरी तरह से समझ न लूं, तब तक मुझे दूसरे धर्मों को अपनाने का विचार नहीं करना चाहिए। बेकर बड़ी ही धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था साथ ही एक शौकिया धर्म प्रचारक भी था। उसने गांधीजी को बताया कि वह साउथ अफ़्रीका जनरल मिशन का डायरेक्टर है। उसने अपने खर्च से प्रिटोरिया में एक गिरिजा घर बनवाया था, जहां आने का उसने गांधीजी को निमंत्रण भी दे डाला, “यदि आप वहां आएं तो मैं अपने साथियों से आपको मिलवा दूंगा। साथ ही वहां आपको कुछ धार्मिक पुस्तकें भी दूंगा पढ़ने के लिए।

कण्ठी नहीं टूट सकती

दूसरे दिन गांधीजी बेकर की प्रार्थना सभा में गए। वहां मिस हेरिस, मिस गेब, मि. माइकल कोट्स आदि से गांधीजी का परिचय हुआ। कोट्स उन दिनों गांधीजी का घनिष्ठ मित्र बन गया। उसने उन्हें कई पुस्तकें दी पढ़ने के लिए। उनमें से ‘मेनी इनफॉलिबल प्रूफ्स’ एक थी। कोट्स से उनकी मित्रता बढती गई। एक दिन कोट्स ने उनके गले में कण्ठी देखी तो बोल पड़ा, “यह वहम आप जैसों को शोभा नहीं देता। लाइए इसे तोड़ डालूं। गांधीजी ने विनम्रता पूर्वक जवाब दिया, “यह कण्ठी नहीं टूट सकती, यह मेरे माता की दी हुई है। यह सुन कोट्स बोला, “पर क्या आप इसमें विश्वास करते हैं?”  गांधीजी ने उसे समझाया, “मैं इसके धारण करने के न तो अर्थ को जानता हूं और न ही इसे न पहनने से मेरा अकल्याण होगा। पर यह माला मेरी मां ने बड़े प्रेम से दिया था पहनने के लिए। उन्होंने निश्चय ही मेरी रक्षा के लिए मुझे इसे पहनाया था। इसलिए इसका त्याग बिना कारण मैं नहीं करूंगा। जब यह घिसकर टूट जाएगी तो हो सकता है कि मैं दूसरी माला धारण न करूं, पर जब तक यह सही सलामत है, यह कण्ठी नहीं टूट सकती।  कोट्स गाँधीजी की इस दलील की कद्र नहीं कर सके। उन्हें तो हिन्दू धर्म के प्रति अनास्था थी। वे गांधीजी को यह बताना चाहते थे कि दूसरे धर्मों में भले ही कुछ सत्य हो, पर ईसाई धर्म को स्वीकार किये बिना मोक्ष मिल ही नहीं सकता ईसा की मध्यस्थता के बिना पाप धुल ही नहीं सकते

कोट्स के सामने गांधीजी से के साथ एक बार फिर रंगभेदी घटना हुई भारतीयों को ट्रांसवाल में मुख्य मार्ग पर चलने की इज़ाज़त नहीं थी। उन्हें एक विषेष आज्ञापत्र के बिना नौ बजे रात के बाद बाहर निकलने की इज़ाज़त नहीं थी। इस आज्ञापत्र को हमेशा साथ रखना पड़ता था। गांधीजी को स्टेट एटर्नी से एक पत्र प्राप्त हुआ था जिसके अनुसार वे कहीं भी किसी समय जा सकते थे। एक रोज़ गांधीजी रोज़ाना की तरह शाम को टहलने के लिए निकले थे कि राष्ट्रपति क्रूगर के आवास के बाहर खड़े संतरी ने एकाएक, बिना किसी चेतावनी के उनको फुटपाथ से धक्का दिया और सड़क पर उन्हें लात मारे। संयोग से उधर से कोट्स जा रहे थे। उन्होंने गांधीजी को उस आदमी के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर करने की सलाह दी और यह भी कहा कि वह गवाह बनेगा। गांधीजी ने इस प्रस्ताव को मानने से इंकार कर दिया। बोले, मैंने किसी निजी शिकायत को लेकर अदालत में जाने का सिद्धांत अपना रखा है।

उपसंहार

गांधीजी जन्म से सभी मनुष्यों को ईश्वर की संतान मानते थे। सभी जीवों को समान रूप में देखने का उनको सहज विश्वास था। उनके मन में धर्म की इतनी गहरी पैठ थी कि किसी दूसरे धर्म के लिए अपने धर्म का त्याग करना उनके लिए संभव नहीं था। गांधीजी मूलतः धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वे आजीवन अपने हिन्दू धर्म के प्रति आस्थावान रहे और यह मानते रहे कि सभी धर्मों के सार तत्व लगभग एक से ही हैं। प्रिटोरिया में बिताए गए ये शुरु के वर्ष उनके जीवन को एक दिशा देने वाले अनुभव रहे। पहली बार वे धर्मांतरण के प्रयासों से रू-ब-रू हो रहे थे। इस प्रयास ने उनकी वैष्णव आस्थाओं के बारे में उनके चिंतन को और पैनापन दिया। साथ ही धर्म के बारे में उनके सहज-बोध को और गहराई दी। उन्होंने अपनी जाति और रंग से जुड़े अपमानों को सहना सीख लिया, और धीरे-धीरे, उनके अन्दर का जन्म और शिक्षा का गर्व त्याग की विनम्रता के सामने हार गया।

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मनोज कुमार

पिछली कड़ियां

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