मुक्केबाजी - विवादित स्कोरिंग सिस्टम
3 जुलाई,
2024 की रात भारतीय मुक्केबाज निशांत देव का 71 किग्रा
वर्ग के क्वार्टर फाइनल में मैक्सिको के मार्को वर्डे अल्वारेज़ के साथ मैच था.
निशांत ने बहुत ही दिलेरी से मुकाबला खेला और सबका दिल जीत लिया. पहले राउंड में पांच में से चार जजों ने निशांत को बेहतर माना और 10-10 अंक
दिए. दूसरे राउंड में केवल दो जजों ने निशांत के पक्ष में 10-10 अंक दिए. जबकि तीन
जजों ने वेरेड के पक्ष में फैसला सुनाया. लेकिन जब निर्णय की बारी
आई तो मुकाबला 1-4 से
निशांत के विपक्ष में गया. मैच देखने वाला हर कोई सन्न था. यहाँ तक कि खुद निशांत
ने कहा, ‘ मुझे हार का भरोसा नहीं था और मैच रेफरी ने जिस
तरह परिणाम घोषित किए हैं वो मेरे लिए विश्वास करने लायक नहीं है.’ हर तरफ से आवाज़
उठाने लगी कि निशांत देव के साथ अंपायरों ने चीटिंग की है। निशांत देव पूरे मैच
में विपक्षी मुक्केबाज पर हावी थे। पहले दो राउंड में स्कोर भी उनके पक्ष में था
लेकिन अंतिम राउंड एक विपक्षी के दो पंचेज़ अच्छे पड़ने से पूरा का पूरा मैच का
परिणाम ही बदल जाएगा,
किसी ने आशा नहीं की थी. यहाँ तक कि कमेंटेटर भी इस फैसले
से हैरान से थे. भारत के लिए ओलंपिक में ब्रॉन्ज जीत चुके स्टार बॉक्सर विजेंदर
सिंह भी इस मुकाबले में स्कोरिंग सिस्टम से हैरान थे. विजेंदर ने एक्स पर लिखा, 'मुझे नहीं पता कि स्कोरिंग सिस्टम क्या है’.
इस ताज़ा विवाद से यह प्रश्न फिर सामने आया है कि मुक्केबाजी
की स्कोरिंग प्रणाली किसी को समझ में क्यों नहीं आती? आखिर जज किस आधार पर फैसला
सुनाते हैं? इसमें पर्याप्त पारदर्शिता क्यों नहीं बरती जाती? कुश्ती आदि खेलों में तुरत के तुरत स्कोर सामने
आ जाते है. रिव्यु की मांग भी मानी जाती है. ऐसा कुछ मुक्केबाजी में क्यों नहीं? अगले ओलम्पिक में मुक्केबाजी रहेगी या नहीं तय
नहीं है. पिछले ओलम्पिक में भी भारतीय मुक्केबाज़ एमसी मैरिकौम के साथ भी कुछ ऐसा
ही हुआ था, जब वह हरा दिए जाने
बाद रिंग से बाहर निकलीं तो स्कोरिंग सिस्टम पर आपत्ति जताते हुए कहा था, ‘सबसे खराब तो इस सिस्टम में यह है कि कोई
विरोध या रिव्यू नहीं कर सकते. मुझे यकीन है कि दुनिया ने इसे देखा होगा. इन्होंने
हद कर दी है.’ इस तरह के निर्णय आने से निर्णय दे रहे जजों की विश्वसनीयता पर सवाल
उठाना तो लाजिमी है. 1960 के रोम ओलम्पिक में विवादित फैसले देने के कारण कई
अधिकारियों को अंतररास्ट्रीय ओलम्पिक समिति से बाहर कर दिया गया था. 1992
बार्सिलोना ओलम्पिक में 82 घूंसे बरसाने और 36 घूंसे खाने वाले अमेरिका के रॉय
जोन्स को निर्णायकों ने हरा दिया था. 2016 के रियो ओलम्पिक में पूरे मैच में दबदबा
बनाने वाले कोनलान को जब विजेता नहीं घोषित किया गया तो वे रिंग छोड़कर बाहर आ गए.
उन्हें पांच साल के लिए निलंबित कर दिया गया. मज़े की बात यह है कि पांच साल बाद
जांच आयोग ने अनियमितता पाई और 36 जजों को निलंबित कर दिया.
समय आ गया है जब मुक्केबाजी में निर्णय को पारदर्शी बनाया
जाए और स्कोर को लाइव दिखाया जाए.
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मनोज कुमार
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