गुरुवार, 1 अगस्त 2024

30. अनवेलकम विज़िटर – सम्मान पगड़ी का

 गांधी और गांधीवाद

किसी भी समझौते की अनिवार्य शर्त यही है कि वह अपमानजनक तथा कष्टप्रद हो। -- महात्मा गांधी

 

30. अनवेलकम विज़िटर सम्मान पगड़ी का

1893

प्रवेश

दक्षिण अफ्रीका की धरती पर क़दम रखने वाले पहले भारतीय बैरिस्टर, चौबीस वर्षीय एम.के. गांधी को, दक्षिण अफ़्रीका में बिताए दो दशक ने, और भी अधिक भारतीय बना दिया था। वहां उन्होंने संस्कृत सीखी, गीता कंठस्थ की, दुनिया को छोड़ा और महात्मा बने। वे वहां कलफ़ लगे कालर और कोटधारी युवक के रूप में गए थे तथा ऊंचे दर्जे में सफ़र करना व बैरिस्टर के रूप में शानोशौकत से रहना ही उनका ध्येय था। लेकिन वे दक्षिण अफ़्रीका से हाथ के कते सूत को पहनने और एक ग़रीब भारतीय की तरह रहने का व्रत लेकर लौटे थे।

सफ़ेद हाथी’

गांधीजी अब्दुल्ला सेठ के यहाँ ठहरे थे। दादा अब्दुल्ला अपने कारोबार के मालिक व एक धनी व्यापारी थे। जल्द ही गांधी जी को भारतीय के प्रति यूरोपियों के व्यवहार में अंतर का अहसास हुआ। गोरे लोग अब्दुल्ला सेठ से ऐसा बर्ताव करते थे, जैसे बड़े लोग छोटों के प्रति करते हैं। अपनी पोशाक के कारण गांधी जी दूसरे हिन्दुस्तानियों से अलग दिखते थे। बैरिस्टर गांधी बढिया विलायती सूट पहनते थे। उनकी पगड़ी विलायती सूट से मेल नहीं खाती थी। लोग उन्हें कुतूहल की दृष्टि से देखते थे। अब्दुल्ला सेठ को गांधी जी को देख कर शुरु में तो कोई खास प्रसन्नता नहीं हुई। अंग्रेज़ी का अल्पज्ञान रखने वाले चतुर और तेज़ दिमाग वाले सेठ अबदुल्ला के मन में यह ख्याल आया कि अब्दुल करीम ने कहीं सफ़ेद हाथी’ तो नहीं भेज दिया। सेठ के मन में संशय हुआ कि यह साहबनुमा आदमी महंगा पड़ेगा ही, शायद निरुपयोगी भी सिद्ध हो। पहले तो उसकी समझ में ही नहीं आया कि गांधी जी के साथ कैसे व्यवहार करे। गांधी जी जैसा कोई भी व्यक्ति, जो अंग्रेज़ी लिबास में लंदन का बैरिस्टर और पढा-लिखा कोई भारतीय नटाल में पहले कभी आया ही नहीं था। दक्षिण अफ़्रीका में भारतीय व्यापारी काफ़ी समृद्ध थे। फिर भी उन्हें अन्य कोई सुविधा नहीं थी। अंग्रेज़ी उन्हें न के बराबर आती थी। जब सामूहिक रूप से कोई खतरा उन पर आता तभी भाई-चारे की भावना उनकी प्रकट होती। यूरोपीय आकाओं से मिलने वाली अवमानना व तिरस्कार को वे प्रायः बिना न-नुकर के सह लिया करते थे।

दक्षिण अफ़्रीका की इकाइयां

उन दिनों दक्षिण अफ़्रीका की चार इकाईयां थीं  नटाल, आरेंज फ़्री स्टेट, ट्रांसवाल और केप कोलोनी। इनमें से केवल केप कोलोनी पर अंग्रेज़ का प्रभाव था। तब, आरेंज फ़्री स्टेट और ट्रांसवाल, बोर गणराज्य हुआ करते थे। डच वहां की राजकीय भाषा थी। 1845 में नटाल ब्रिटिश साम्राज्य का एक हिस्सा बन गया था। 1890-91 में सारे दक्षिण अफ़्रीका में कुल डेढ लाख भारतीय रहते थे। इनका एक बड़ा भाग नेटाल में रहता था। 1893 का दाक्षिण अफ़्रीका घृणा, द्वेष, लालच और महत्वाकांक्षाओं के ज्वार में उद्वेलित हो रहा था। वहां के गोरे निवासियों में इन विदेशियों के प्रति एक प्रकार का जातिगत क्रोध और उदासीनता थी। सरकार तरह-तरह के उपायों से इन्हें समाज से तिरस्कृत करती रहती थी। ऐसे-ऐसे उपाय किए जाने लगे थे जिससे अब कोई एशियावासी स्थायी रूप से बसने के लिए देश के अंदर न जा सके या जो काफ़ी दिनों से जड़ जमा कर बैठे हैं उन्हें वापस जाना पड़े। दरअसल एशियाई मूल में भारतीय ही आते थे क्योंकि अन्य मूल के लोग वहां गिने चुने ही थे। सोची समझी रणनीति के तहत किए जाने वाले अत्याचारों से विदेशियों का जीवन दूभर हो गया था। तरह-तरह के अत्यधिक कर लगाना, लज्जाजनक पुलिस क़ानून, सार्वजनिक रूप से अपमान करना, सम्पत्ति नष्ट करना, लूटना आम बात थी।

कुली बैरिस्टर’ 

सेठ अब्दुल्ला ने गांधी जी को बताया, “गोरे अंग्रेज़ भारतवासियों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं। हमें कुली कह कर पुकारते हैं और हमें बराबरी का दर्ज़ा भी नहीं देना चाहते हैं।

गांधी जी ने उत्सुकता से पूछा, “लेकिन क्यों?”

सेठ अब्दुल्ला ने बताया, “हमारे गेहुएं रंग के कारण।

हिन्दुस्तानी अफ़्रीका में गुटों में रहते थे। एक गुट था मुसलमान व्यापारियों का जो अपने को ‘अरब’ कहते थे। दूसरा गुट था हिन्दू मुनीमों का। तीसरा गुट था पारसी कारमुनों का, वे अपने को ‘पर्शियन’ कहते थे। चौथा गुट था तमिल, तेलुगु और उत्तर भारतीय गिरमिटिया मज़दूरों का। भारतीयों को, चाहे वे कोई भी काम क्यों न करते हों या किसी भी धर्म या जाति के क्यों न हों, यूरोपीय द्वारा इन्हें ‘कुली’ ही कहा जाता था। और दक्षिण अफ़्रीका के एकमात्र भारतीय बैरिस्टर गांधी जी को कुली बैरिस्टर’ कहा गया। ऐसे शब्द अपमानित करने के लिए प्रयोग किए जाते थे।

गांधी जी जल्दी ही बहुत कुछ जान गए। अब्दुल्ला सेठ उनका गुरु था। कुछ ही दिनों में अजनबी गांधी जी के लिए उसके दिल में जगह बन गई थी। सेठ अब्दुल्ला का मुकदमा ट्रान्सवाल में चल रहा था। उनके प्रतिस्पर्धी तैयब हाजी खान महमद की फर्म प्रिटोरिया में थी। मुकदमा, एक भारी रकम के लिए (40,000 पाउंड) था और खातों संबंधी विवादों के कारण काफ़ी पेचीदा भी हो गया था। उसे समझने के लिए गांधी जी को गंभीर अध्ययन करना था। प्रतिवादी प्रिटोरिया में रहता था। इस प्रक्रिया के शुरु में ही गांधी जी ने फैसला कर लिया था कि वे इस मामले को अदालत से बाहर निपटाने का प्रयास करेंगे। उनका विचार था कि इससे फीस में भारी बचत होगी साथ ही उन लोगों के बीच होने वाली मुकदमेबाज़ी खत्म हो जायेगी। आखिर वे आपस में सगे संबंधी हैं और जिन्हें मित्र होना चाहिए।

पगड़ी पहनने का प्रश्न

अपमान का पहला अनुभव गांधीजी को डरबन पहुंचने के दूसरे या तीसरे दिन ही हुआ। तीसरे दिन अब्दुला सेठ गांधी जी को डरबन की अदालत दिखाने ले गए, ताकि वहां के कामकाज का गांधी जी को कुछ पता चल सके। इन दिनों गांधी जी अंग्रेज़ी वेश-भूषा पहनते थे। हां सिर पर पगड़ी अवश्य थी। गांधी जी न्यायालय कक्ष में पगड़ी पहने ही प्रविष्ट हुए। मजिस्ट्रेट ने उन्हें घूर कर देखा। कुछ देर बाद एकाएक गरजा, “अदालत में अपनी पगड़ी उतार कर बैठो। पगड़ी उतारने का मतलब था अपमान सहन करना। यह सुन गांधी जी ने अदालत छोड़ देना बेहतर समझा, पर पगड़ी नहीं उतारी। अदालत के कमरे बाहर आ गए। अदालत में हुई घटना ने गांधी जी के मन में हलचल मचा दी। गांधी जी के लिए पगड़ी पहनने का प्रश्न एक महत्त्व का प्रश्न बन गया। पगड़ी उतारने का मतलब था अपमान का सहन करना। गांधी जी ने सोचा-विचारा और निर्णय किया कि वे दक्षिण अफ़्रीका में पगड़ी को त्यागकर केवल पश्चिमी कपड़े, कोट-पतलून और अंग्रेज़ी टोपी पहनना शुरु कर दें ताकि अनर्थक विवाद और झंझट से मुक्ति मिले। पर सेठ अब्दुल्ला ने समझाया कि यह उचित न होगा। इससे जो अपने देश की पगड़ी पहनना चाहेंगे उनकी स्थिति नाज़ुक होगी। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि गांधी जी के ऊपर तो देशी पगड़ी ही शोभा देगी। इंग्लैंड की बात और है, यहां अगर टोपी पहन लिए तो उनकी गिनती ‘वेटरों’ में होगी।

अनवेलकम विज़िटर’  (बिनबुलाए मेहमान)

अब्दुल्ला सेठ की दलील गांधीजी को अच्छी लगी। नंगे सिर रहना बैरिस्टर गांधी जी को स्वीकार न था। इसलिए यही निश्चय हुआ कि वह अपनी पगड़ी न उतरने देंगे। सवाल स्वाभिमान और भारतीय होने के नाते, जातीय सम्मन का था। उन्होंने पगड़ी के किस्से को लेकर अपने और पगड़ी के बचाव में समाचारपत्रों को पत्र लिखा, खासकर ‘Natal Advertiser’ को, जो उनकी आलोचना करने वालों में प्रमुख अखबार था। एक भारतीय होने के नाते पगड़ी पहनने के अपने अधिकार का उन्होंने प्रतिपादन किया। यह भी स्पष्ट किया कि अदालत के प्रति असम्मान का भाव तो उनके मन में, एक बैरिस्टर होने के नाते, आ ही नहीं सकता था। अख़बारों में उनकी पगड़ी को लेकर अनवेलकम विज़िटर’ (मान-न-मान मैं तेरा मेहमान) शीर्षक से ख़ूब चर्चा हुई। Natal Mercury ने लिखा कि हमें सुनने में आया है कि क़ानूनी बिरादरी के बीच एक इंग्लैंड से बैरिस्टर की डिग्री-धारी महाशय, जो हमारे बीच तंबू डाल कर अपना भाग्य आजमाने वाले हैं, को लेकर काफ़ी उत्सुकता और उत्तेजना है।

उपसंहार

गांधीजी के लिए यह रंगभेद का बिल्कुल नया अनुभव था। इस तरह के खुल्लमखुल्ला रंगभेद से कभी उनका साबका नहीं पडा था। इंग्लैंड में वह कई सुशील अंग्रेज़ों के संपर्क में आए थे। उनके सद्‌व्यवहार के वह कायल भी थे। तीन-चार दिन के भीतर ही उन्हें दक्षिण अफ़्रीका में ख़ूब प्रसिद्धि मिली। किसी ने उनका पक्ष लिया तो अन्य ने निन्दा की। इस वाद-विवाद का एक अप्रत्याशित फ़ायदा यह हुआ कि बैरिस्टर गांधी का नाम तो चर्चा का विषय बना ही, आन भी रह गई। न उनका सिर नीचा हुआ और न सिर से पगड़ी ही हटी। पगडी तो दक्षिण अफ़्रीका में लगभग अंत तक बनी रही।

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मनोज कुमार

पिछली कड़ियां

गांधी और गांधीवाद : 1. जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि, गांधी और गांधीवाद 2. लिखावट, गांधी और गांधीवाद 3. गांधीजी का बचपन, 4. बेईमानी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिकती, 5. मांस खाने की आदत, 6. डर और रामनाम, 7. विवाह - विषयासक्त प्रेम 8. कुसंगति का असर और प्रायश्चित, 9. गांधीजी के जीवन-सूत्र, 10. सच बोलने वाले को चौकस भी रहना चाहिए 11. भारतीय राष्ट्रवाद के जन्म के कारक 12. राजनीतिक संगठन 13. इल्बर्ट बिल विवाद, 14. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उदय, 15. कांग्रेस के जन्म के संबंध में सेफ्टी वाल्व सिद..., 16. प्रारंभिक कांग्रेस के कार्यक्रम और लक्ष्य, 17. प्रारंभिक कांग्रेस नेतृत्व की सामाजिक रचना, 18. गांधीजी के पिता की मृत्यु, 19. विलायत क़ानून की पढाई के लिए, 20. शाकाहार और गांधी, 21. गांधीजी ने अपनाया अंग्रेज़ी तौर-तरीक़े, 22. सादगी से जीवन अधिक सारमय, 23. असत्य के विष को बाहर निकाला, 24. धर्म संबंधी ज्ञान, 25. बैरिस्टर बने पर वकालत की चिन्ता, 26. स्वदेश वापसी, 27. आजीविका के लिए वकालत, 28. अंग्रेजों के जुल्मों का स्वाद, 29. दक्षिण अफ्रीका जाने का प्रस्ताव

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