गांधी और गांधीवाद
मनुष्य अक्सर सत्य का सौंदर्य देखने में असफल रहता है, सामान्य व्यक्ति इससे दूर भागता है और इसमें निहित सौंदर्य के प्रति अंधा बना रहता है। - महात्मा गांधी
1894
44. कड़वा अनुभव
प्रवेश
गांधीजी जानबूझकर किसी बात को छिपाना अपराध मानते थे। इसलिए हर समस्या की असलियत को समग्र रूप से जनता के सामने रखते थे। वे व्यवहार चतुर आदर्शवादी (Practical Idealist) थे। गांधीजी के सैद्धांतिक विवेचन के केन्द्र में हमेशा इंसानियत की प्रतिष्ठा रही है। उनके अनुसार कोई भी विचार कितना ही उम्दा क्यों न हो, यदि वह ठोस व्यावहारिक धरातल पर सफलतापूर्वक प्रतिष्ठित न हो सके तो उसकी अच्छाई निरर्थक सिद्ध होती है। गांधीजी की सोच थी कि मानवीय संबंधों से पैदा होने वाली विभिन्न समस्याओं को पाशविक शक्ति की अपेक्षा अहिंसात्मक तरीक़े से और नैतिक सामर्थ्य के बल पर सुलझाया जाना चाहिए। तभी सामूहिक जीवन में मौज़ूद पाशवी शक्ति और प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सकता है तथा मानवीयता की वास्तविक प्रतिष्ठा को बरकरार रखा जा सकता है।
अपना घर स्थापित किया
घर की तलाश में, उनका किसी
निम्न-स्तरीय स्थान पर रहने का कोई इरादा नहीं था। गांधीजी का मानना था कि नेटाल में भारतीय बैरिस्टर और भारतीयों के
प्रतिनिधि के रूप में उन्हें उचित तरीक़े से रहना चाहिए। इसलिए एक अच्छे मुहल्ले
बीच ग्रोव विला में अपना घर स्थापित किया, जो एक पॉश इलाके में कम
साज-सज्जा वाला घर था। यह घर डरबन में समुद्र के किनारे था। इसमें एक
ड्राइंग रूम, डाइनिंग रूम, एक लाउंज और पांच बेडरूम थे। गांधीजी अपने
शयन कक्षों में काबा गांधी और लक्ष्मीदास की तस्वीरें रखते थे, तथा एक बुकशेल्फ
में टॉल्स्टॉय, मैटलैंड और ब्लावात्स्की की रचनाओं सहित जीवनियों और धार्मिक
पुस्तकों को रखते थे। यह गांधीजी के कार्यालय से केवल पांच मिनट की पैदल दूरी पर 14 मरकरी लेन में था। घर में किसी
प्रकार की फिजूलखर्ची नहीं थी, लेकिन वे एक भारतीय बैरिस्टर और अपने देशवासियों के प्रवक्ता
के रूप में अपनी स्थिति के अनुरूप उचित मानक बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध थे। तदनुसार उनके स्तर के अनुरूप ही उस घर की साज-सज्जा की गई। घनी
आबादी वाले इलाक़े में यह दो मंज़िला मकान था। एटर्नी जनरल हैरी एस्कॉम्ब उनके पड़ोसियों
में से एक थे। घर के नज़दीक ही उनका ऑफिस था। उसके
कुछ स्टाफ उनके साथ ही रहते थे और भोजन भी करते थे। वे काफ़ी व्यस्त रहने लगे। इस पूरे सेट-अप का उपयोग
राजनीतिक कार्यों के लिए भी किया जाता था।
बचपन के मित्र को बुला लिया
गांधीजी की विविध गतिविधियों के कारण उन्हें अपने घरेलू कामों
पर ध्यान देने के लिए मुश्किल से ही समय मिलता था। वह अपनी सुबह और शाम की सैर भी
बड़ी मुश्किल से कर पाते थे, जो उनके लिए बहुत जरूरी था। घर का काम बहुत ही साधारण तरीके
से चलता था। वहाँ अकसर यूरोपीय मेहमान आते थे और उनका सत्कार गांधीजी की उस समय
भारतीय बैरिस्टर से जुड़ी प्रतिष्ठा की धारणा के अनुरूप होना चाहिए था। नौकर की आवश्यकता तो महसूस हो रही थी पर गांधीजी को किसी को नौकर के
रूप में रखना मंज़ूर नहीं था। उन्होंने अपने एक बचपन के दोस्त शेख़ महताब को साथ रहने के लिए बुला लिया। वह राजकोट से आ गया और ‘साथी और सहायक’
के रूप में पूरे घर की देख-रेख उसने अपने हाथ
में ले ली। बचपन से ही वे इस दोस्त के प्रति भावनात्मक रूप से गहरे जुड़े थे। यहां
तक कि जब उनके घर वालों की नज़रों में माहताब बहुत ही बुरा व्यक्ति बना हुआ था, तब भी उन्होंने उसका साथ नहीं छोड़ा
था। लंदन के दिनों में भी अपनी जेब ख़र्च की अल्प राशि से पैसे बचा कर वे माहताब की
मदद किया करते थे। गांधीजी को भरोसा था कि एक न एक दिन वह बदल जाएगा। गांधीजी ने
सोचा था कि उम्र के साथ उसमें परिवर्तन आ गया होगा,
पर ऐसा कुछ हुआ नहीं था। उसने गांधीजी के विश्वास का बेजा
फ़ायदा उठाना शुरु कर दिया।
महताब की चाल
घट-घट में ईश्वर की ज्योति है, अपने इस सिद्धांत को अपनाकर, गांधीजी ने बिगड़े हुए महताब को
सुधारने का बीड़ा उठा लिया था। लोग महताब को बुरा आदमी कहते थे। ज्यों-ज्यों लोग
उसकी अधिक बुराई करते, उसके हृदय परिवर्तन की आशा में गांधीजी उसकी अधिक हिमायत करते।
धीरे-धीरे महताब का प्रभाव उस घर में बहुत अधिक बढ़ गया। एक क्लर्क, जो वहीं रहता था, कुछ कारणों से महताब को उससे ईर्ष्या
हो गई। महताब ने उस मुहर्रिर के खिलाफ़ गांधीजी के कान भरने शुरु कर दिए। बहुत ही
चालाकी से उसने उस क्लर्क के खिलाफ़ यह चाल चली थी। गांधीजी मुहर्रिर पर शक करने
लगे। मुहर्रिर बहुत ही आज़ाद स्वभाव का था। गांधीजी के मन में अपने खिलाफ़ भावना देख
उस क्लर्क ने घर और दफ़्तर दोनों का काम छोड़ दिया। गांधीजी को दुख हुआ। गांधीजी को
यह विचार कुरेदने लगा कि कहीं वे उस व्यक्ति प्रति सही नहीं थे, कहीं उसके साथ अन्याय तो नहीं हुआ?
महताब का भंडाफोड़
इस समय तक गुजराती रसोइया भी
कुछ दिनों की छुट्टी पर चला गया था। संयोगवश उसकी जगह एक ऐसा नया रसोइया आया कि
महताब का एक दिन अकस्मात भंडाफोड़ हो गया। नया रसोइया उड़ती चिड़िया भांपने वाला था।
ऐसे ही किसी आदमी की गांधीजी को उस समय ज़रूरत थी। दो-तीन दिन के भीतर ही उसने देखा
कि घर की व्यवस्था में कुछ गड़बड़ी है। उसने निश्चय किया कि वह गांधीजी को सब कुछ
बता देगा। लोगों में यह धारणा बनी हुई थी कि गांधीजी आंख मूंद कर लोगों पर विश्वास
कर लेते हैं और अपेक्षाकृत बहुत भला आदमी हैं। इसलिए इस रसोइए ने उन्हें चेताने का
निश्चय किया।
अकसरहां गांधीजी एक बजे के
आसपास दोपहर का भोजन लेने घर जाया करते थे। एक दिन दोपहर के भोजन के काफ़ी पहले, क़रीब बारह बजे, वह रसोइया गांधीजी के दफ़्तर पहुंचा।
उसने गांधीजी से कहा, “आप घर जाइए और देखिए कि आपकी पीठ पीछे वहां क्या हो रहा है?”
गांधीजी ने पूछा, “क्या हो रहा है? मैं इस वक़्त घर नहीं जा सकता। तुम
मुझे ठीक-ठीक बताओ कि वहां क्या हो रहा है?”
रसोइये ने कहा, “अब और समय नहीं बचा है। अगर फौरन
नहीं गए तो आप बहुत पछताएंगे। इससे अधिक मैं कुछ नहीं कह सकता।”
उस व्यक्ति की दृढ़ता देख गांधीजी
के मन में हलचल मची। उन्होंने सोचा कि ज़रूर कोई बड़ा कारण होगा। अपने मुहर्रिर को
लेकर वे उस रसोइए के साथ घर आए। उसने गांधीजी को सीधे दूसरी मंजिल पर महताब के रूम
में ले गया। उसने कहा, “आप दरवाज़ा खोलिए और स्वयं देख लीजिए।”
गांधीजी ने दरवाज़े पर दस्तक
दी, पर अंदर से कोई
आवाज़ नहीं आई। उन्होंने ज़ोर से दस्तक दी और दरवाज़े को धक्का दिया। दरवाज़ा खुला।
उनके दोस्त की बगल में एक वेश्या थी। गांधीजी ने उससे कहा, “बहन,
तुम तो यहां से चली ही जाओ। अब फिर कभी इस घर में पैर न
रखना।”
अब वे महताब की ओर मुखातिब
हुए और पूछा, “ये सब क्या हो रहा है? आज से तुम्हारा और मेरा संबंध खत्म हुआ। तुमने तो हमारी खूब इज़्ज़त
रखी! बहुत उल्लू बनाया तुमने। मेरे विश्वास का यह सिला दिया तुमने!”
शार्मिन्दा होने की जगह महताब
अधिक उद्दंड और भयंकर निकला। घर से निकलने को कहे जाने पर, उलटा चोर कोतवाल को डांटे वाली बात
हो गई। वह गांधीजी को धमकाने लगा, ‘‘मैं तुमको सबके सामने नंगा कर दूंगा। तुम्हारा सारा पर्दाफ़ाश कर
दूंगा।”
गांधीजी ने कहा, “तुम जो चाहे करो। मैंने न आज तक कुछ छिपाया
है और न कुछ मुझे छिपाना है। तुम फ़ौरन यह घर छोड़कर चले जाओ।”
जब महताब उनसे हाथापाई करने ही वाला था, तभी विंसेंट लॉरेंस, गोपनीय क्लर्क वहां पहुंचा और उसने महताब को पीछे से पकड़
लिया। गांधीजी ने उन्हें अलग किया। महताब अचंभित होकर उन पर क्रोधित नजर से देखने
लगा। महताब किसी और हिंसात्मक क़दम को
उठाता, उससे पहले ही पुलिस बुलाने की धमकी दी गई। यह सुन महताब को लगा कि वह
फंस गया है। उसने माफ़ी मांगी और घर छोड़कर चला गया।
महताब द्वारा वेश्या को घर में
लाने का सिलसिला पुराना था, लेकिन वह इतना शक्तिशाली
था और उसका अपने दोस्त पर इतना प्रभाव था कि किसी में भी उसके कुकर्मों को उजागर
करने का साहस नहीं था। ईश्वर ने गांधीजी की सहायता के लिए नया रसोइया ला दिया था। उस रसोइये ने गांधीजी को बचा लिया। ऐन मौक़े पर इस नए रसोइए ने सब कुछ
बता कर भेद खोल दिया। पर उसने गांधीजी से कहा, “आप किसी की बातों में बहुत ही आसानी से आ जाते हैं। मैं आपके साथ
नहीं रह सकता।” वह भी घर छोड़ कर चला गया।
उपसंहार
गांधीजी के लिए वह दिन बड़ा ही
परिवर्तनकारी सिद्ध हुआ। उनकी आंखें खुल गई। उन्होंने वर्षों की दोस्ती तोड़ ली। ये उनके जीवन का बहुत ही निर्णायक
दिन साबित हुआ। उस साथी से मोहवश वे बंधे हुए थे। अच्छे काम के लिए उन्होंने बुरे
साधन को चुना था। बबूल के पेड़ से आम की आशा रखी थी। उसे सुधारने की चाहत में खुद
ही लगभग गन्दगी में सन गए थे। अपने घर के बड़े और हितैषियों के सलाह का उन्होंने अनादर कर उसे अपने साथ रखा
था। मोह ने उन्हें अन्धा बना दिया था। अपनी आत्मकथा में गांधीजी कहते हैं, “जिसे राम रखे, उसे कौन चखे? मेरी निष्ठा शुद्ध थी, इसलिए अपनी ग़लतियों
बावज़ूद मैं बच गया और मेरे पहले अनुभव ने मुझे सावधान कर दिया।”
महताब को भी गांधीजी के
स्वभाव में इस परिवर्तन से बहुत बड़ा धक्का लगा। वह अब बदल गया। उसे किसी भारतीय
व्यापारी ने अपने यहां नौकरी दे दी। कुछ वर्षों के बाद वह एक बार फिर से गांधीजी
का बहुत बड़ा अनुयायी साबित हुआ। वह गांधीजी के प्रति समर्पित और वफादार रहा। बाद
में उसने विवाह कर लिया और उनकी पत्नी सत्याग्रह संघर्ष में शामिल हुई। महताब के
दो शौक थे - व्याख्यान देना और उर्दू में कविताएँ लिखना। सत्याग्रह संघर्ष के
दौरान भारतीय भाषा में सर्वश्रेष्ठ देशभक्ति कविता के लिए पुरस्कार प्रतियोगिता
में उसने अपनी एक कविता भेजी थी, जिसे गांधीजी ने इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित किया था।
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां
गांधी और गांधीवाद : 1. जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि, गांधी और गांधीवाद 2. लिखावट, गांधी और गांधीवाद 3. गांधीजी का बचपन, 4. बेईमानी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिकती, 5. मांस खाने की आदत, 6. डर और रामनाम, 7. विवाह - विषयासक्त प्रेम 8. कुसंगति का असर और प्रायश्चित, 9. गांधीजी के जीवन-सूत्र, 10. सच बोलने वाले को चौकस भी रहना चाहिए 11. भारतीय राष्ट्रवाद के जन्म के कारक 12. राजनीतिक संगठन 13. इल्बर्ट बिल विवाद, 14. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उदय, 15. कांग्रेस के जन्म के संबंध में
सेफ्टी वाल्व सिद..., 16. प्रारंभिक कांग्रेस के
कार्यक्रम और लक्ष्य, 17. प्रारंभिक कांग्रेस नेतृत्व की
सामाजिक रचना, 18. गांधीजी के पिता की मृत्यु, 19. विलायत क़ानून की पढाई के लिए, 20. शाकाहार और गांधी, 21. गांधीजी ने अपनाया अंग्रेज़ी
तौर-तरीक़े,
22. सादगी से जीवन अधिक सारमय, 23. असत्य के विष को बाहर निकाला, 24. धर्म संबंधी ज्ञान, 25. बैरिस्टर बने पर वकालत की चिन्ता, 26. स्वदेश वापसी, 27. आजीविका के लिए वकालत, 28. अंग्रेजों के जुल्मों
का स्वाद, 29. दक्षिण अफ्रीका जाने का प्रस्ताव, 30. अनवेलकम विज़िटर – सम्मान पगड़ी का,
31. प्रवासी
भारतीयों की समस्या का इतिहास, 32. प्रतीक्षालय
में ठिठुरते हुए सक्रिय अहिंसा का स...,
33. अपमान
का घूँट, 34. विनम्र
हठीले गांधी, 35. धार्मिक
विचारों पर चर्चा, 36. गांधीजी
का पहला सार्वजनिक भाषण, 37. दुर्भावना
रहित मन, 38. दो
पत्र, 39. मुक़दमे
का पंच-फैसला, 40. स्वदेश
लौटने की तैयारी, 41. फ्रेंचाईज़
बिल का विरोध, 42. नेटाल
में कुछ दिन और, 43. न्यायालय
में प्रवेश का विरोध
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