शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

220. जेकी प्रसंग

गांधी और गांधीवाद

220. जेकी प्रसंग



दक्षिण अफ्रीका में अपने कार्यकाल के अंतिम छह महीनों में गांधीजी को अपने जीवन के सबसे गंभीर मानसिक आघात और पीड़ा का सामना करना पड़ा। कस्तूरबा के बीमार रहने के कारण उनकी पीड़ाएँ और भी अधिक हृदय विदारक हो गयी थीं।

आश्रम में कुकर्म और प्रायश्चित

सहशैक्षिक प्रयोगो में ब्रह्मचर्य बनाए रखना हमेशा आसान नहीं होता। यौन संबंधी भटकाव होना लाजिमी था। फीनिक्स आश्रम में ऐसी ही एक दुर्घटना घट गई। दो युवकों ने एक छोटी लड़की के साथ कुकर्म करने का प्रयास किया। इस घटना ने गांधीजी पर वज्र सा प्रहार किया। वे तिलमिला उठे। वे दौड़कर फीनिक्स पहुंचे। हरमन कालेनबाख भी साथ पहुंचे। बा ने पहले भी उन्हें सावधान किया था, किंतु स्वभाव से अविश्वासी होने के कारण उन्होंने बा की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया था। खुद को भी इसका जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। उन्होंने सात दिन का उपवास और साढ़े चार महीने के एकाशन का व्रत लिया। यह उनके जीवन के 18 प्रसिद्ध व्रतों में से पहला था। दूसरों के दोष देखने के बजाय अपने को दोषी समझना गांधीजी के जीवन का धर्म था। उन्होंने संरक्षितों के दुराचरण के लिए ख़ुद को दोषी माना और ख़ुद को दंड दिया। उनका प्रायश्चित हरेक को दुख देता था, लेकिन उसने वातावरण को निर्मल बनाया।

जेकी प्रसंग

आश्रम की पवित्रता लगातार भंग हो रही थी। अभी इससे भी कुछ ज़्यादा बुरा होना बाक़ी था। उनके प्रायश्चित और उपवास कुछ काम नहीं आ रहे थे। उनका उपवास खत्म हुआ भी नहीं था कि एक नया बखेड़ा हो गया। फीनिक्स आश्रम में एक नवविवाहित युवती थी जयकुंवर। उसे लोग जेकी कहते थे। वह डॉ. प्राणजीवन मेहता की बेटी थी। डॉ. प्राणजीवन मेहता गांधी जी के क़रीबी थे। वे बैरिस्टर थे। गांधी जी के इंग्लैंड प्रवास के समय में उन्होंने गांधी जी की देखरेख की थी। उनको अंग्रेज़ी शिष्टाचार और चालचलन सिखाया। वे टाल्सटाय फार्म की स्थापना से लेकर चंपारण सत्याग्रह तक, गांधी जी के कामों में बड़ी दिलचस्पी लेते रहे। उन्होंने ही राजचन्द्र से गांधी जी को मिलवाया था।

जेकी उन आदर्शों की ओर आकर्षित हुई थी जिन पर फीनिक्स बस्ती का सामुदायिक जीवन आधारित था। स्वाभाविक रूप से, गांधीजी ने उसे विशेष देखभाल के साथ देखभाल करना अपना कर्तव्य समझा। जेकी के पति मणीलाल डॉक्टर फीजी में भारतीयों की सेवा करते थे। गांधीजी ने मणिलाल डॉक्टर से उसका विवाह तय करने में हाथ बँटाया, जो मॉरीशस के सार्वजनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। डॉ. मणिलाल से गांधी जी की पहली भेंट 1906 मे लंदन प्रवास के दौरान हुई थी। एक बार वे फीनिक्स आश्रम आए। उनकी सगाई जेकी से हो चुकी थी। आश्रम के काम में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे काफ़ी सुस्त थे। मोटे व थुल-थुल भी। गांधीजी चाहते थे कि वे अपने स्वास्थ्य के लिए ही शारीरिक श्रम करें। पर वे आश्रम के नियमों के विरुद्ध कोई काम नहीं करते। आश्रम उनको काफ़ी भा गया। वे वहीं रहना चाहते थे। गांधीजी ने कहा कि यदि दोनों शादी कर लें तो जेकी के साथ वहां रह सकते थे। 1912 में जेकी के साथ डॉ. मणिलाल की शादी हो गई। जेकी फीनिक्स आश्रम आ गई। बाद में डॉ. मणिलाल 26 जुलाई 1912 को फीजी के लिए रवाना हो गए। कुछ समय तक वह टॉल्स्टॉय फार्म में रहीं। कई अन्य लोगों के साथ उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन के अंतिम चरण में सक्रिय भाग लिया था।

जेकी आश्रम में ही रहती थी और वहां के बच्चों को पढ़ाती थी। उसकी गांधीजी के के दूसरे बेटे मणिलाल से घनिष्टता हो गई। सभी कैदियों के रिहा होने के तुरंत बाद और जब फीनिक्स में जीवन सामान्य हो रहा था, तो वहाँ के निवासियों को जेकी और मणिलाल के बीच के अन्तरंग संबंध की भनक लग गई। एक दिन यह खुलासा भी हो गया। जेकी ने गांधीजी के सामने अपना अपराध स्वीकार किया। गांधीजी तो मानों आसमान से जमीन पर ही गिरे। उनका मन किया कि वे आत्महत्या कर लें।

एक दिन श्रीमती हेनरी पोलाक ने गांधीजी को उदास पाया और उनसे पूछा कि वह किस बात से परेशान हैं। उन्होंने शोकपूर्ण स्वर में उत्तर दिया: सबसे बुरा हो चुका है।’

‘सबसे बुरा!’ श्रीमती पोलाक ने आश्चर्य से कहा, ‘आपका क्या मतलब है?’

गांधी: जो कुछ हुआ है वह भयानक है।

श्रीमती पोलाक: लेकिन यह क्या है? कृपया मुझे बताइए कि क्या हुआ है।

गांधी: मणिलाल और जेकी व्यभिचार के दोषी हैं।

श्रीमती पोलाक: यह वाकई भयानक है! क्या आपको यकीन है कि यह सच है?

गांधी: बिलकुल सच है। उसने सब कुछ कबूल कर लिया है।

श्रीमती पोलाक: फिर भी, मुझे समझ में नहीं आ रहा है। ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे लगा कि आप जानते हैं कि उसने अपना सारा समय कैसे बिताया।

गांधी: मुझे लगा कि मैं उसे अच्छी तरह जानता हूँ, लेकिन ऐसा लगता है कि मैं नहीं जानता था।

श्रीमती पोलाक: क्या यह लंबे समय से चल रहा है?

गांधी: हां, काफी समय से; कम से कम कुछ सप्ताह से।

गांधीजी और श्रीमती पोलाक कुछ मिनटों तक चुप बैठे रहे, दोनों ही हैरान दिख रहे थे। श्रीमती पोलाक को चिंता थी कि जब यह घिनौनी खबर फैलेगी तो क्या होगा।

गांधी: कई लोग पहले से ही यह जानते थे। कई अन्य लोग इसे सूंघ सकते थे। ऐसा लगता है कि मैं लगभग एकमात्र व्यक्ति हूँ जो इस बात से अनभिज्ञ हूँ कि मेरे आस-पास क्या चल रहा था। अब मैं उसके परिवार से क्या कहूँ? मैं उनके प्रति जवाबदेह हूँ।

श्रीमती पोलाक: लेकिन जो कुछ हुआ है उसके लिए आप खुद को दोषी क्यों ठहरा रहे हैं? आप ऐसी घटना को कैसे रोक सकते थे?

गांधी: अगर मैं खुद को नहीं तो किसे दोष दूँ? मैंने जरूर कुछ अनदेखी की होगी। इसकी जिम्मेदारी मुझ पर ही आनी चाहिए।

श्रीमती पोलाक ने अलग तरह से सोचा। उन्हें इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि जेकी, जिसे गांधीजी से इतनी प्यार भरी देखभाल मिली थी, उसे इतना धोखा क्यों देना चाहिए। उन्हें मणिलाल के बारे में ऐसा नहीं लगा, जो जेकी से छोटा था और इन सब बातों के बारे में बहुत कम जानता था। उन्होंने इसे जेकी की ओर से जानबूझकर बहकावे का मामला माना।

हरिलाल के कारण गांधीजी और कस्तूरबा को जो कुछ सहना पड़ा था, उसके बाद आई इस पीड़ा ने उनके दिलों को तोड़ दिया। कस्तूरबा की सेहत, जो लंबे समय से चिंता का विषय थी, कारावास की अवधि के बाद और भी गंभीर हो गई थी। कुछ समय तक वह जीवन और मृत्यु के बीच झूलती रही। चिकित्सक का उपचार उनके लिए बिलकुल भी अनुकूल नहीं था। गांधीजी को अपना अधिकांश समय उनके पास बिताना पड़ता था, नर्स और डॉक्टर दोनों की भूमिका निभाते हुए। उनके शरीर की देखभाल करने के अलावा, उन्हें मृत्यु के भय से भी मुक्त करना पड़ता था। जब वह थोड़ी बेहतर हो जाती थी, तब भी कोई नहीं कह सकता था कि वह कब बिस्तर से उठेगी, या उठेगी। गांधीजी ने खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लिया था कि जो भी हो सकता है, उसके लिए वह तैयार थी। कस्तूरबा का स्वास्थ्य अभी भी नाजुक था, जब फरवरी 1914 के मध्य में गांधीजी के लिए केपटाउन जाना जरूरी हो गया, जहां उन्हें अगले कुछ हफ्तों तक घटनाओं के बारे में जानकारी रखनी थी। उन्होंने अपनी पत्नी को अपने साथ ले जाना उचित समझा। जेकी के वहां रहते हुए वे मणिलाल को फीनिक्स में नहीं छोड़ सकते थे। इसलिए उन्हें भी उनके साथ केप जाने के लिए मजबूर किया गया। इस दल में मणिलाल के चचेरे भाई जमनादास भी शामिल थे, जिनसे गांधीजी बहुत स्नेह करते थे।

सही या गलत, मणिलाल को बहुत दुख हुआ। अपने एक पत्र में उसने अपने पिता पर क्रूरता का आरोप लगाया। प्रेम करने वाले पिता ने उत्तर दिया: 'इस समय मैं तुम्हें निःसंदेह क्रूर लगूँगा... अज्ञान का वह पर्दा जो मुझे तुम्हारे ऊपर से वही पर्दा देखने से रोकता था, हट गया है, और केवल शुद्ध प्रेम रह गया है। यह प्रेम तुम्हें इस समय क्रूर लग रहा है, क्योंकि एक चिकित्सक की तरह मुझे तुम्हें कड़वी दवाएँ पिलानी पड़ रही हैं।' मणिलाल इस समय भावनात्मक रूप से परेशान थे। गांधीजी ने उनके काम और आचरण पर नज़र रखना और पिता और गुरु की दोहरी भूमिका को पहले से कहीं ज़्यादा सावधानी से निभाना ज़रूरी समझा। मार्च के अंत में जब गांधीजी उनके साथ फीनिक्स वापस चले गए, तब कस्तूरबा अपनी बीमारी के कारण बहुत कमज़ोर हो चुकी थीं।

गांधीजी अशांत अवस्था में रहे। यह जेकी के कारण उन पर पड़े तनाव का परिणाम था। उन्होंने कठोर उपवास शुरु किया। जेकी को भी बहुत पश्चाताप हो रहा था। उसने अपने केश काट डाले और श्रृंगार छोड़ दिया। गांधीजी से माफ़ी मांगी। तब जाकर गांधीजी ने उपवास छोड़ा। उसके हाथ से नींबू पानी पीकर उपवास तोड़े। गांधीजी मणिलाल से वादा लिए कि बिना पिता की आज्ञा के वह विवाह नहीं करेगा, जो उन्होंने 1927 तक नहीं की।

मणिलाल को आश्रम से हटा दिया गया। मणिलाल ने इस फैसले को कठोर और पिता को निर्दयी कहा। इस घटना से गांधीजी बुरी तरह आहत थे। एक तरफ़ वे ब्रह्मचर्य पर अपने प्रयोग कर रहे थे दूसरी तरफ़ उनका अपना ही किशोर बेटा बुरी तरह एक विवाहित स्त्री के मोहजाल में फंसा हुआ था। गांधीजी सोच रहे थे कि उनका बेटा सही रास्ते पर आ रहा है। उधर बा मणि को इतना बड़ा दंड देने के खिलाफ़ थी। उनका कहना था कि मणि का दोष क्या है? वह तो बच्चा है। मुसीबत की जड़ तो जेकी है। उसे आश्रम से हटा दिया जाना चाहिए। बा और गांधीजी में इसपर लेकर झगड़ा भी होता था।

उधर मणी का आचरण भी नहीं सुधरा। दूरियों के बावज़ूद दोनों मिलते रहे। उन्हें अलग करने की सभी कोशिशें नाकाम हुईं। तो यह निर्णय लिया गया कि जेकी को उसके पति के पास भेज दिया जाए, वह जाना नहीं चाहती थी फिर भी ऐसा ही किया गया। जाने से पहले वह एक बार मणि से मिलना चाहती थी, पर उसे मिलने नहीं दिया गया।

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मनोज कुमार

 

पिछली कड़ियां- गांधी और गांधीवाद

संदर्भ : यहाँ पर

 

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