राष्ट्रीय आन्दोलन
244. एस्थर फेरिंग
1917
एस्थर फ़ेरिंग मेनन का जन्म
कोपेनहेगन, डेनमार्क में 22 जून 1889 को हुआ था। मिस अस्थर फैरिंग और मिस मेरी
पीटर्सन नाम की दो विदेशी महिलाएं जनवरी 1917 में अपने
शैक्षणिक कर्यों की तैयारी के लिए साबरमती आश्रम पधारीं। ये दोनों डेनिश मिशनरी
सिसाइटी की सदस्याएं थीं। उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वे भारतीय स्कूलों का
दौरा करें और अपनी रिपोर्ट दें। 6 जनवरी 1917 को एस्थर फेरिंग और एन मेरी पिटर्सन अहमदाबाद के निकट
कोछरब आश्रम पहुंचीं और वहां तीन दिन ठहरीं। इन्हें डेनिश मिशनरी सोसायटी ने
दक्षिण भारत में लड़कियों की शिक्षा के हितों को बढावा देने के लिए काम पर लगाया था।
एस्थर फेरिंग 1915 में भारत पहुंची थी। यहीं पर उसका सम्पर्क एन मेरी पिटर्सन
से हुआ था। दोनों एक साथ मद्रास के एक आवास में रहती थीं। सोसायटी ने एन मेरी
पिटर्सन को पूरे भारत के स्कूलों का मुआयना करके उनके संबंध में रिपोर्ट तैयार
करने का काम सौंपा था। उन्होंने अपने कनिष्ठ सहयोगी के तौर पर फेरिंग को साथ ले
लिया था। अश्रम की गतिविधियों से दोनों काफ़ी प्रभावित हुईं। गाँधीजी की दृष्टि में
ये ‘विदेशी मित्रों की पवित्रात्मा जोड़ी’ थी। एस्थर का आश्रम आना उसके लिए एक गहन
अनुभव था। गांधीजी में उसे एक आदर्श व्यक्ति मिल गया था। तिरुकोइलूर में अपने
स्कूल लौटने के बाद वे खादी कपड़े पहनने लगीं। वे शाकाहारी बन गईं। आगे चलकर
उन्होंने चंपारण में और बाद में रॉलेट विधेयक के विरुद्ध छेड़े गये गांधीजी के
राजनीतिक संघर्षों के साथ अभिन्न नाता जोड़ लिया।
एस्थर फेरिंग ने 1917 का बड़ा दिन सत्याग्रह
आश्रम में बिताने का निर्णय लिया। लेकिन मिशनरी कांफ़्रेंस के अधिकारियों ने मना कर
दिया। उन्हें अच्छा नहीं लगा। उन्होंने मिशन छोड़ देने का मन बना लिया। लेकिन 1918 में गांधी जी ने उन्हें शांतिपूर्वक रहने के लिए कहा और यह
भी समझाया कि उन्हें अपना अनुबंध पूरा करना चाहिए। मिशनरी के अधिकारियों को यह
देखकर बहुत दुख हुआ कि विदेशी लोग गांधीजी और उनके राजनीतिक आंदोलनों से जुड़ रहे
थे। एस्थर भी संदिग्धों की सूची में थी। 1919 के मध्य तक ‘स्कूल
मिशनरियों’ की राजनीतिक गतिविधियों पर पाबंदी लगाने वाले आदेश ज़ारी कर दिए गए।
मिशन के अधिकारियों के साथ एस्थर का झगड़ा हो गया। इस बीच जब उन पर तरह-तरह की
पाबंदियां लग रही थी, एस्थर केरल के ई. के. मेनन नाम के एक युवा मेडिकल छात्र के
प्रेम में पड़ गई। 6 अगस्त 1919 को उन्होंने मिशनरी से
त्यागप्त्र दे दिया। 1 सितम्बर 1919 से वे इस मिशनरी से मुक्त
हो गईं।
एस्थर के समक्ष भारत में रहने और जीवन यापन का
प्रश्न था। गांधीजी ने शांतिनिकेतन में रह रहे अपने मित्र चार्ल्स एंड्रूज़ को
बताया कि एस्थर मुसीबत में है। उसकी मदद करें। उन्होंने 22 अगस्त 1919 को बंबई प्रेसिडेंसी के गवर्नर लॉर्ड वेलिंगडन को भी
अनुरोध पत्र भेजा कि एस्थर को भारतीय नागरिक का दर्ज़ा दिया जाए। एस्थर को भारत में
ठहरने की इज़ाज़त दे दी गई। एस्थर को राहत मिली।
अक्तूबर 1919 में वह आश्रम चली आई।
गांधीजी उन दिनों आश्रम में नहीं थे। तब तक पिटर्सन भी भारत चली आई थी। एस्थर उसके
साथ बड़ा दिन मनाने के लिए मद्रास चली गई। जनवरी 1920 में वह फिर से आश्रम आ गई।
लेकिन गांधीजी उस समय भी बाहर ही थे। जून तक वे बाहर ही रहे। उनका आश्रम में कोई
मित्र नहीं बना। आरम्भ में बा और एस्थर में काफ़ी बनती थी। बाद में उनका आपस में
बनना बंद हो गया।
एस्थर भारत छोड़ कर डेनमार्क चली आई। 1921 में डॉ. मेनन भी डेनमार्क चले आए। 1 जुलाई 1921 को दोनों का विवाह सम्पन्न
हुआ। दिसम्बर 1921 में दोनों भारत आए। एस्थर ने तमिलनाडु के चिदंबरम जिला
स्थित बालिका मॉडेल स्कूल सेवा मंदिर में मिस पिटर्सन को सहायता देने का काम शुरु
कर दिया। उनकी दो बेटियां हुईं। 1927 में एस्थर यूरोप लौट गईं। 1930 में डेनिश भाषा में उनकी लिखी गांधीजी की जीवनी प्रकाशित
हुई। 1934 में वे पुनः भारत आ गईं और 1950 तक भारत में रहीं। फिर
डेनमार्क चली गईं। 1962 में उनका निधन हो गया।
*** *** ***
मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- राष्ट्रीय आन्दोलन
संदर्भ : यहाँ पर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।