शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

त्यागपत्र : भाग 24

पिछली किश्तों में आप पढ़ चुके हैं, "राघोपुर की रामदुलारी का परिवार के विरोध के बावजूद बाबा की आज्ञा से पटना विश्वविद्यालय आना ! रुचिरा-समीर और प्रकाश की दोस्ती ! फिर पटना की उभरती हुई साहित्यिक सख्सियत ! गाँव में रामदुलारी के खुले विचारों की कटु-चर्चा ! शिवरात्रि में रामदुलारी गाँव आना और घरवालों द्वरा शादी की बात अनसुनी करते हुए शहर को लौट जाना ! फिर शादी की सहमति ! रिश्ता और तारीख तय ! शादी की तैय्यारी ! अब पढ़िए आगे !! -- करण समस्तीपुरी


"अगे माई कौने बाबा......... हरदी चढ़ाबे ला न......... !" टेप-रिकार्डर पर बज रहा गाना, गाय के गोबर से लिपे-पुते आँगन में उत्सवीय सौरभ बिखेर रहा था। संध्या का धुंधलका पेट्रोमक्स के प्रकाश में संघर्ष कर रहा था। ठाकुरजी के आँगन में तिल रखने की भी जगह नहीं थी। मंडप की साज-सज्जा को अंतिम रूप दे नरेश बाबू एंड कम्पनी दूसरे काम में लग गए थे। कारी पंडित मंडप पर हाथी बिठा गया था। मंडप की सजावट कल तक बनी रहे... लक्ष्मण इसका पूरा प्रयास कर रहा है। वह अपने साथियों को रेशमी सारी, रंगीन कागज़ के फन्ने और गेंदा के फूल से सजे मंडप को सगर्व दिखलाता तो है पर हाथ लगाने पर सख्त पाबंदी लगा रखी है उसने।


आँगन के दूसरे हिस्से में स्त्री-समुदाय का अधिकार है। बीच में कुश को लाल-पीले-हरे रंग में रंग कर बनी चटाई पर रामदुलारी के बाएं भाग में रुचिरा बैठी थी। नारी-वृन्द को चाय और बीड़ी पिलाने की जिम्मेबारी कोनैला वाली पर थी। अतरुआ वाली ओझाइन को चाय देते हुए उसने मशकरी भी की थी, "हे ओझाइन ! गीतों गेथिन कि खाली चाहे पिए ले एलखिन हन.... ?" बदले में ओझाइन के मुँह से भी आशीर्वाद की लारी फूट पड़ीं थी, "मार बढ़नी ई फतुरिया के ! बेटा-बेटी केकरो.... घिढारी करे मंगरो.....!!".... हा...हा... हा... खूब ठहाका बजरा। जो कहिये मगर अतरुआ वाली कहावत सब अलबत्त कहती है।

छतौना वाली कप समेट रही थी। सबका गला तर हो चुका था। परतापुर वाली चाची ने तान छोड़ा...... "आजू सिया जी के उबटन लगाऊ..... लागि गेल तेल-फुलेल उबटन लागि रही.......... !! महिलाएँ अपने उल्लास की अभिव्यक्ति लोकगीतों के माध्यम से कर रहीं थीं। रामदुलारी को हल्दी का उबटन लगाया जा रहा था। महिलाएँ अपने उल्लास की अभिव्यक्ति लोकगीतों के माध्यम से कर रहीं थीं। छोटकी मौसी उबटन लगाने जैसे ही झुकी... शुरू हो गयी नारी सुलभ सृन्गारिक ठिठोली। मामी जी ने हँसते-हँसते गीत बदला, "सिया जी के करिऔन पसाहिन उदगार से..... अपन विचार से ना........ !!"

रुचिरा ने भी रामदुलारी को उबटन लगाया। दोनों की आँखें चार हुई थी, फिर शून्य में खो गयी। उल्लास तो राघोपुर के वातावरण में ही था मगर रामदुलारी न उल्लासित हो पा रही थी न रोमांचित। अंतस के आवेग को अवरुद्ध करने का प्रयत्न तो था पर वह आवेग कभी आँखों में छलछला उठता, कभी अंगों के हाव-भाव में प्रकट हो उठता। मंगल घड़ी की व्यस्तता में एक मात्र रुचिरा ही थी जो उसके हाव-भाव को समझने का असफल प्रयास कर रही थी। बांकी चारों ओर तो आनंद की अद्वितीय लहर विद्यमान थी।

महिला मंडल के बीच में से सर उठाते हुए लाल-काकी की आवाज़ से पूरा आँगन गूंज गया, "कहाँ गयी..... री दुल्हिन......... ! अरे मटकोर के लिए नहीं चलना है का.... ? देखो री दाई........ पहर रात गई और लड़की की माँ को कोई बात ही नहीं........ !!" "नहीं-नहीं, काकी ! सब कुछ तैयार है। दीदी भोज के लिए सामान निकाल रही हैं।" मझली चाची ने कहा था। "हे कोनैला वाली ! चंगेरी लाबा... ! चला न... कुआं पर... मटकोर के बेर भ' गेलैक...!" दीदी जल्दी आईये.....! लाल-काकी धरफरा रही हैं.....।" ये आवाज रामदुलारी की मामी की थी।

लाल-लाल बांस की चंगेरी में भिगोये चने भर, पीले सारी से ढँक कर कोनैला वाली अपने माथे पर रख आँगन से निकल रही थी। पीछे उल्लसित नारी-वृन्द का मंगल गीत। "एलई शुभ के लगनमा शुभे.... हो.... शुभे....... !" शिव-मंदिर के आगे वाले कुँए पर पूजा की गयी। फिर कुंए के शीतल जल से रामदुलारी का स्नान करा कमला माता से आशीर्वाद माँगा.... !! छोटकी चाची ने गाना शुरू किया, "आजू करथि विधिवत बैदेही पूजन कमला तीर हे.......... !!!" फिर मैय्या ने रामदुलारी के हाथ पकर कर पांच मुट्ठी चने कमला माई को चढ़वाया और आशीष माँगा कि इसके घर में इसी तरह अन्न-धन भरा रहे। मन हमेशा शीतल रहे।

लाल-काकी जैसे आने में धर-फरा रही थी वैसे ही जाने में। इधर मटकोर का चना बांटा जा रहा था और काकी फंसे हुए गले से चिल्ला रही थी, "चलते चलो.... ! जल्दी करो... ! वहाँ पंडीजी बैठे होंगे... घिढारी भी करना है न.... !!" लाल काकी की यही तो खासियत है कि एक्को विधि-व्यवहार भूलती नहीं है। महिला मंडल की मेट है। मजाल जो कोई इनकी बात काट दे। मटकोर की रश्म पूरा कर स्त्रियों का हजूम बटगवनी गाते हुए चल पड़ा वापस... "गदरल कुसुम फुलायेल सजनी गे..... चित चंचल भेल मोर सजनी गे................ !!"

सच में लहरू झा पंडित जी आ के बैठे हुए थे। मटकोर से लौटते हुजूम में से छतरपुर वाली मामी ने मजाक कर ही दिया... ! "जा रे.... पंडित जी ! अरे पंडिताइन के बिना मन नहीं लगा....पीछे-पीछे यहाँ तक चले आये...!" लहरू झा भी कहाँ पीछे रहने वाले थे। बोले, "नहीं जी... ! हम तो आपही के आवाज सुन कर आ गए...!"

"काली के अंगना में तुलसी के गछिया हे कर जोरि विनती.....!" गोसाईं घर के आगे में मंगल-गान चल रहा था। गोबर्धन बाबू को बुलाया गया। बाबू के पीला धोती और मैय्या की लाल सारी में गठबंधन करवाया गया। "हाँ ! हाँ !! बुढ़ापा में भी गठ-जोरी कर लीजिये !!" गोबर्धन बाबू को निशाना कर रही मामी खुद पंडीत जी के निशाने पर आ गयी। पंडित जी ने बिना वक़्त गंवाए कह दिया, "आ...हा॥हा...! आईये न आप भी आगे... आपका भी गठ-जोरी करा ही देते हैं... !!" अब जो हा..हा... ही... ही... शुरू हुआ कि मामी जी झेंप गयी। उन्हने अपनी झेंप पंडित जी पर ही निकला। लगी गाने, "अकलेल बभना.... बकलेल बभना....... वेदो न जाने ढ़हलेल बभना........ बकलेल बभना.... !!"

घिढारी ख़तम हुई तो अब लाबा भुजाई ! विध-व्यवहार, आनंद-उल्लास और गीत-नाद में वक़्त का कहीं पता चला है... रात के तीन पहर बीत गए लेकिन किसी आँख में आलस तक नहीं है। जहां इंतिजार हो वहाँ आलस फटके भी कैसे.... ? अब तो बस चंद घंटे.... ! एक रात... एक प्रभात.... ! रामदुलारी भी अपने वजूद की आखिरी रात आँखों में ही काट रही है... लेकिन उसकी खुली आँखों में भी सपने हैं.... शायद रुचिरा खिड़की से आ रही धवल चंद्रिका में यही देखने का यत्न कर रही है।

अब है बस एक रत की दूरी ! रामदुलारी परिणय बांके बिहारी !! मिथिला का विवाहोत्सव देखना न भूलें !!! अगले हफ्ते !!!! इसी ब्लॉग पर !!!!!

त्याग पत्र के पड़ाव

भाग ॥१॥, ॥२॥. ॥३॥, ॥४॥, ॥५॥, ॥६॥, ॥७॥, ॥८॥, ॥९॥, ॥१०॥, ॥११॥, ॥१२॥,॥१३॥, ॥१४॥, ॥१५॥, ॥१६॥, ॥१७॥, ॥१८॥, ॥१९॥, ॥२०॥, ॥२१॥, ॥२२॥, ॥२३॥, ॥२४॥, ॥२५॥, ॥२६॥, ॥२७॥, ॥२८॥, ॥२९॥, ॥३०॥, ॥३१॥, ॥३२॥, ॥३३॥, ॥३४॥, ॥३५॥, ||36||, ||37||, ॥ 38॥

9 टिप्‍पणियां:

  1. विवाहोत्सव का इंतजार रहेगा।

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  2. taitareeya jyada samay le rahee hai.......
    kahanee ke aage badne kee prateeksha hai.

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  3. Ghar me hui shadiyan yad aa gai..padhkar aisa laga jaise shadi wale ghar me ghum kar aa gai hun ..Bahot he acha raha aaj ka episode... bas ab to sahnaiyon ki gunj sunna hai hume agle bahg me...

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  4. शादी कैसी होगी - आगे की कहानी का इन्तज़ार है .

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  5. मिथिलांचल के विवाहोत्सव के बारे में जानकारी देने के लिए मनोज जी शीघ्र अगली कडी प्रस्तुत करने का कष्ट करें।

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  6. aage kee kahani ka intjaar rahega..
    lines ke beech mein please space den to padhne mein aasani hogi..
    Haardik shubhkamnayne

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  7. घर में कोई शादी हो तो उसका वातावरण ही अलग होता है! शादी तो बहुत धूमधाम से होगी और अब तो बेसब्री से अगली कड़ी का इंतज़ार है!

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  8. bahut hi achai kahani ...bahut acha laga aapko padhna ...

    aabhar aapka

    vijay

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