शुक्रवार, 18 जून 2010

त्यागपत्र - 34

पिछली किश्तों में आप पढ़ चुके हैं, 'कैसे रामदुलारी तमाम विरोध और विषमताओंकेबावजूद पटना आकर स्नातकोत्तर तक पढाई करती है। बिहार के साहित्यिक गलियारे मेंउसका दखल शुरू ही होता
है कि वह गाँव लौट जाती है। फिर सी.पी.डब्ल्यू.डी. केअभियंताबांके बिहारी से परिणयसूत्र में बंध पुनः पटना आ जाती है। अब पढ़िएआगे॥
-- करण समस्तीपुरी

रामदुलारी की निर्निमेष आँखें घर के खुले दरवाजे पर ही टिकी थी। सहसा मोटर का होर्न बजा। लो... वे आ गए। स्त्री का सहज स्वभाव... इतनी प्रतीक्षा की है, थोड़ा मान तो करावेगी ही। दरवाजे से बांके के कदम अन्दर पड़ते ही वह उठ कर अपने कक्ष की ओर बढ़ जाती है। वैसे बांके भी दफ्तर से आने के बाद अमूमन अपने कमरे में ही जाता है, लेकिन रामदुलारी उसके पीछे होती है। आज यह व्यतिक्रम है। आगे रामदुलारी है, बांके पीछे से आ रहे हैं।

कक्ष में पहुँच रामदुलारी चुप-चाप अपनी किताबें और पत्र-पत्रिकाएं समेटने लगती है। आदमकद आईने के सामने खड़े बांके अपनी शर्ट के बटन खोलते हुए रामदुलारी की भाव-भंगिमा देखने की कोशिश कर रहे हैं। आम तौर पर चौरी मुस्कराहट से बांके का स्वागत करने वाली रामदुलारी की बेरुखी का कारण समझते उसे देर नहीं लगी। बांके कपड़े बदल कर पलंग पर बैठ चुके थे। रामदुलारी अभी तक किताबें ही समेट रही थी। बांके चुहलबाजी करते हैं, "मैं कुछ मदद कर दूँ क्या... ?" रामदुलारी बिना उसकी तरफ देखे ही बोलती है, "मैं अपना काम खुद कर लूंगी... किसी को फिकर नहीं करनी चाहिए।"

बांके खिलखिला के हंस पड़े रामदुलारी को कंधे से पकर कर आहिस्ता खीचते हुए बोले , "ओह तो मैडम इज स्टील एंग्री... ! आई एम रियल्ली वैरी सॉरी... रामदुलारी... ! पता है आज मैं ने कितनी जल्दी काम निपटा लिया था... आई वाज जस्ट टू लिव द ऑफिस कि एक असाइन्मेंट आ गया। यू नो ये असाइन्मेंट किसका था ??? अरे... पटना के सबसे बड़े रईसों में से एक है वो आदमी। स्टेट का सबसे बड़ा ठेकेदार है। इन फैक्ट आउट ऑफ स्टेट भी इसकी तूती बोलती है। आज खुद आया था मेरे दफ्तर में। और निमंत्रण भी दिया है.... कल उसके बेटे का कोई फंक्शन है... ! मुझे बहुत मानता है। लास्ट इयर मैं ने ही तो उसका बिल पास किया था हाऊसिंग सोसाइटी के लिए... !"

"रामदुलारी ने बिना किसी प्रतिकार के कहा था, "हाँ ! आपके पास तो सिर्फ बड़े लोगों के लिए ही वक़्त है।" "ओह नो डियर... ! यू नो... मैं ने वो असाइन्मेंट कल के लिए छोड़ दिया। सीरियसली... आई वाज इन सो हर्री टू कम टू यू ! बट अब इतने बड़े आदमी आ गए थे दफ्तर में तो थोड़ा ख्याल तो करना पड़ता है न... आई मीन ही इज नॉट ओनली रिचेस्ट परसन बट एज में भी डैड के बराबर होंगे !" , बांके एक सांस में कह गया था।

"बस-बस... ! मैं समझ तो गयी। कुछ कह रही हूँ मैं ?" राम दुलारी ने मुस्कुरा कर बांके से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा था। "यू आर रियली अ स्वीटहार्ट... !" बांके जैसे खुशामद की गरज से बोला था। "वो तो मैं हूँ ही... लेकिन आप ये बताइये कि अभी आप स्वीट काफी लेंगे या स्वीट चाय ?" रामदुलारी पलंग से उठने का उपक्रम करती हुई बोली थी। "आप की हुकूमत में जो भी मिल जाये... सब कबूल है। पर आप क्यूँ कष्ट कर रही हैं ? चरित्तर है न... !" रामदुलारी आश्चर्य से आँखें फार कर सिर्फ देखती रह गयी थी बांके का शायराना अंदाज़... ! और बांके ने आवाज लगाई थी, "चरित्तर... ! ओ चरित्तर... !!"

अगले ही मिनट चरित्तर कमरे के दरवाजे पर खड़ा था, "जी छोटे साहब !" बांके ने अंगूठे की बाद वाली अंगुली से इशारा करते हुए बोला, "सुनो ! एक कप अच्छी सी चाय बनाना मेरे लिए और इनके लिए टेबल पर मैं ने अभी ला कर रखा है मदर्स होर्लिक्स वो गर्म दूध में दो चम्मच डाल के और शक्कर मिला के ले आना। और फ्रायड काजू भी लाना।" चरित्तर 'जी छोटे साहब' कह कर जैसे ही दरवाजे से हटा, रामदुलारी बोली, "चुप-चाप बैठिये आप... ! मैं ले के आती हूँ ! मैं कोई बीमार हूँ क्या... जो इतना भी नहीं कर सकती... !!" अभी मैं आई... दो मिनट में... चरित्तर काका से पहले।" कह कर रामदुलारी मंद हवा के झोंके की तरह कमरे से बाहर हो गयी। वापिस आयी तो हाथ में एक ट्रे, ट्रे में एक छोटा और एक बड़ा कप और छोटी सी तस्तरी थी।

चाय-होर्लिक्स और काजू के साथ-साथ कुछ-कुछ मधुर वार्तालाप होती रही थी दम्पति में। फिर बांके ने चरित्तर को आवाज़ लगाया तो वह खाली कप-प्लेट को ट्रे मे समेट कर ले गया। सहसा रामदुलारी को याद आया... अरे ! जो बात बताने के लिए दोपहर से इनका इंतज़ार कर रही थी वो तो कहा ही नहीं... ! कोई बात नहीं, अभी इनका मन बहुत प्रसन्न है। अभी तो मेरी बात बिलकुल नहीं काटेंगे। चलो इनकी ख़ुशी कुछ और बढ़ा देते हैं। यही सब सोचती हुई रामदुलारी बैठक से समीर का निमंत्रण-पत्र ले जा कर बांके से बोली, "आप से कुछ कहना है।" "हाँ ! कहिये, मी लोर्ड !", बांके रामदुलारी के चेहरे पर नजरें गराए हुए बोला था। "कल आप मेरे साथ चलेंगे न... वो समीर की नयी पत्रिका का लोकार्पण है... साहित्यिक सभा में ! ये कार्ड आज.... !"

"ओह शक्स.... ! यू एंड यौर ब्लडी साहित्यिक सभा !" अभी तक फूल बरसा रहे बांके के मुख से बिजली कड़क पड़ीं थी। "अभी-अभी मैं ने तुम्हे बताया है न... कल स्टेट के सबसे बड़े कोंट्रेक्टर ने मुझे इनवाईट किया है, वो भी मेरे केविन में आकर, हाउ कैन आई इग्नोर हिम... ? और तुम भी मेरे साथ चल रही हो कल... दै'स इट।"

रामदुलारी कुछ बोल नहीं पायी किन्तु रक्तिम कपोल पर आंसुओ की मोटी-मोटी बुँदे लुढ़क आयी थी। वह चुप-चाप कमरे से निकल गयी। बैठक में आ कर कार्ड पर छपे नंबर को फ़ोन के कीपैड पर दबा कर उधर से प्रतिक्रिया के इंतज़ार में घंटिया सुनने लगी। "हैलो... !" उधर से आवाज़ आयी। "हैलो... ! मैं रामदुलारी बोल रही हूँ, अनीसाबाद से। समीर से बात करनी थी।" रामदुलारी ने कहा था। फिर दबे गले से वह कहती जा रही थी, "समीर! मैं शायद कल नहीं भी आ पाउंगी। मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही है आज-कल। डाक्टर ने भी आराम करने को कहा है। फिर कुछ देर रुक कर वह बोली थी, "नहीं-नहीं ! तुम्हे आने या गाड़ी भेजने की कोई जरूरत नहीं है। मैं पूरा कोशिश करूंगी... ! तबियत ठीक रही तो मैं जरूर आउंगी। " शायद पहली बार किसी को झूठा भरोसा दिलाने का दर्द उसके प्रसस्त कपाल पर कुछ रेखाएं बना गयी थी। अब उसके लिए न यह रात लम्बी थी न आने वाले कल की कोई प्रतीक्षा।

दिन में समीर और रुचिरा दोनों ने फोन किया था। रामदुलारी वही रात वाला जवाब दुहरा रही थी। आज बांके सच में जल्दी आ गए थे। रामदुलारी को तैयार होने के लिए कह स्नान करने चले गए। ठन्डे-पानी से स्नान कर ऑफिस की थकान मिटाए और कपड़े पहन खुद और रामदुलारी को भी इत्र के फब्बारे से तर कर दिया। दोनों तैयार हो कर निकलने लगे तो चन्द्रकला देवी ने शख्त हिदयात दी, "संभल के जाना। बांके ! गाड़ी अहिस्ता चलाना और बहू, तुम्हारा जी न अच्छा होतो बता देना बांके को। वह वापिस ले आएगा।" "जी !" रामदुलारी ने बस इतना ही कहा था और सासू माँ के चरण स्पर्श कर बांके के पीछे-पीछे गाड़ी तक आ गयी।" बहू को कार में बैठाने के बाद चन्द्रकला देवी आँख से ओझल हो जाने तक गाड़ी को देखती रही।

आर-ब्लोक के पास कार चलाते हुए बांके ने रामदुलारी से कहा था, "दुलारी ! जरा मेरा बैग खोल कर देखना। मैं ने देखा भी नहीं क्या एड्रेस लिखा है दीन-दयाल जी ने कार्ड पर ?" बैग खोलने के बजाय रामदुलारी ने झटके से पूछा, "क्या कहा ? क्या नाम कहा आप ने ? दीन दयाल जी... ? ये वही सेठ दीन दयाल जी हैं ना... 'आदर्श महिला महाविद्यालय वाले' ?" "हाँ-हाँ ! तुम ने उनका नाम सुन रखा है... ?", स्टीयरिंग घुमाते हुए बांके ने पूछा था। "हाँ जी ! इतने प्रसिद्द व्यक्ति हैं, पटना में रही हूँ, नाम तो सुनना ही था। तो आप दीन दयाल जी के कार्य-क्रम में ही जा रहे हैं।" अब सवाल की बारी रामदुलारी की थी। "ऑफ़ कोर्स... ! तुम्हे यकीन नहीं आ रहा कि तुम शहर के सबसे रिचेस्ट इंडसट्रीयलिस्ट की पार्टी में जा रही हो ?"

"नहीं जी ! सच में विश्वास नहीं हो रहा... !" रामदुलारी ने आगे कहा, "हाँ जी ! सच में यह कितना बड़ा संयोग है... ? मैं ने भी तो आपको यहीं चलने के लिए कहा था... !"

"वाट...?", होंठ सिकोड़ कर बोला था, बांके। "जी हाँ ! सेठ दीन दयाल समीर के पिता जी हैं। और मेरा विश्वास है कि हम लोग वहीं जा रहे हैं, मेरी ब्लडी साहित्यिक सभा में...!" रामदुलारी ने पति से शरारत करते हुए कहा था। "ओ के.... ! ले'स चेक द एड्रेस वरना हम लोग कार में ही घूमते रहेंगे... !" बांके थोड़ा झेंप कर बोला था। "अब कार्ड क्या देखना जी... आप सीधे चल चलें... श्री कृष्ण मेमोरियल हाल !" रामदुलारी की शरारत थोड़ी और बढ़ी थी।

पटना का प्रसिद्द श्री कृष्ण मेमोरियल हाल रंगीन विद्युतीय प्रकाश से रंजित था। चतुर्दिक छोटे-छोटे पोस्टर्स के अतिरिक्त मुख्य द्वार पर आदमकद स्वागत पट्ट लगा हुआ था। "देश-प्रदेश की नयी आवाज़ 'नव-जोयती' के लोकार्पण में आपका हार्दिक स्वागत है।" हाल में प्रवेश करने से पहले रामदुलारी ने अपने पति को विजयी मुस्कान के साथ देखा था। अन्दर जैसे ही बांके दम्पति के कदम पड़े, मंच के पास से समीर दौड़ा हुआ आया, "रामदुलारी तुम आ गयी... ! तुमने कोई फोन भी नहीं किया... कैसी है तुम्हारी तबियत... ? तुम उदघाटन भाषण तो दोगी न... ?" एक साथ समीर कई प्रश्न पूछ गया। रामदुलारी सिर्फ 'हाँ बाबा' ही बोल सकी। फिर समीर बांके का अभिवादन करते हुए बोला, "आईये मिस्टर बांके ! आई हैड नेवर एवर एक्सपेक्टेड दैट यू विल ग्रेस द सरेमोनी।"

"अरे क्या बात करते हो... ?" कहते हुए बांके सपत्निक समीर के साथ सबसे अगली पंक्ति की ओर चल पड़े। "ओ... सहाय सर !" मधुर रोमांच के साथ रामदुलारी ने किनारे बैठे सज्जन के पैर छुए थे। बांके ने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया था। रामदुलारी के माथे पर स्नेहिल हाथ फेरने के बाद प्रो सहाय ने बांके के नमस्कार का जवाब देते हुए कहा था, "यू आर सो लक्की जेंटल मैन.... तिरहुत में ससुराल और रामदुलारी जैसी भार्या मिली।"

दो-तीन कुर्सियों के बाद बैठे सेठ दीन दयाल बांके को देखते ही लपक कर आये, "हेल्लो... बांके साहब ! मुझे बहुत ख़ुशी हुई ... आप ने मेरी बात रख ली... और वो भी टाइमली आ गए।" बांके ने विनम्रता के साथ हाथ जोड़ कर कहा था, "इट इज अल योर गुडनेस सर... ! मीट माय वाईफ राम... !" "रामदुलारी... !" बांके का वाक्य पूरा होता... उस से पहले ही दीनदयाल जी ने रामदुलारी की प्रशंसा शुरू कर दी। बहुत काबिल लड़की है... ! समीर की सीनियर थी कालेज में। बहुत मदद की है इसने समीर की पढाई में। तब तक पटना वुमेन्स कॉलेज की प्राचार्य भी आ गयी थी वहाँ। रामदुलारी ने बांके से उनका परिचय करवाया। उपस्थित शिक्षाविदों और साहित्यिक सख्शियतों से सिर्फ पत्नी की प्रशंशा सुन बांके को प्रसन्नता हो रही थी या इर्ष्या... बांके के हाव-भाव से यह पता करना सच में मुश्किल था।

मंच पर बतौर मुख्य अतिथि 'महामहीम राज्यपाल महोदय, पटना विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष, श्रमजीवी पत्रकार संघ के महासचिव और राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक बिराज चुके थे। कार्य-क्रम की शुरुआत आदर्श महिला महाविद्यालय की छात्राओं की सरस्वती वंदना से हुआ। फिर डॉ रुचिरा ने माइक संभाल लिया। सभा का उद्देश्य, अवसर और अतिथियों से परिचय के बाद सबसे पहले उसने विषय प्रवेश के लिए रामदुलारी को मंच पर आमंत्रित किया। जोरदार तालियों से गूंज गया था श्री कृष्ण मेमोरियल हाल का विशाल सभागार तालियों से गूंज गया था। श्रोताओं और अतिथियों में से कई ऐसे थे जो कॉलेज के दिनों वाली रामदुलारी के साहित्यिक वक्त्रित्वाकला और प्रस्तुतीकरण के मुरीद हो चुके थे। आज फिर उसकी मधु-मिश्रित गंभीर गिरा का रसपान करेंगे.... ! रामदुलारी ने मंच पर बढ़ने से पहले बांके को देखा था। आहिस्ता-आहिस्ता ताली बजा रहे थे... चेहरे पर कोई गर्व के भाव नहीं थे... हाँ होठों पर पतली सी मुस्कराहट जरूर थी।

"आदरणीय विद्वद जन... से शुरू हुआ रामदुलारी का भाषण कोई आधे घंटे चला। बिना किसी पूर्वाभ्यास के भी तारतम्यता, माधुर्य और ओज की वह त्रिवेणी बहाई कि श्रोता-वक्ता सभी मंत्रमुग्ध होते रहे। बीच-बीच में विद्यापति, सूर, तुलसी, रहीम के पदों से लेकर अकबर इलाहाबादी और दुष्यंत कुमार के शे'र जब उसने उद्धृत किया तालियों की गरगराहट सभा भवन का प्राचीर भेद देने पर उतारू हो गयी। पूरे भाषण के दरम्यान रामदुलारी की आँखें बांके पर ही टिकी रही। लेकिनी दोनों की आँखें शायद ही कभी चार हुई।

भाषणों का सिलसिला चलता रहा। रामदुलारी के लिए तो वह क्षण कितना गर्वपूर्ण था जब पटना विश्वविद्यालय के कुलपति ने अपने वक्तव्य में न केवल उसकी शैक्षणिक उपलब्धि बल्कि आज के उसके भाषण की कई पंक्तियाँ भी उद्धृत किया। लेकिन इस से भी बड़ी ख़ुशी तो उसे तब मिली जब बांके का ओजस्वी भाषण आरम्भ हुआ।

"डियर लेडिज एंड जेंटल मैन... पेन ऑफ़ अ जर्नलिस्ट हैज एवर बीन स्ट्रोंगर देन द सोर्ड ऑफ़ सोल्जर्स..... !" आह... ! बांके के संबोधन की प्रथम पंक्ति ने ही रामदुलारी को प्रमुदित कर दिया। पूरे संबोधन के दौरान वह सम्मोहित सी बांके को ही देखती रही। आज उसे जो गौरवपूर्ण सुख की अनुभूति हो रही थी वह सर्वथा अनिर्वचनीय था। अंग्रेजी के चुटीले फ्रेज़ और आईडिओम्स एवं मशहूर कोटेशन्स से भरे बांके की वाक्-कला का परिचय पहली बार मिला था उसे... ! एक सुखद आश्चर्य हो रहा था.... ओह ! तो बांके में इतनी गहरी समझ है साहित्य और पत्राकारिता की... ? अंग्रेजी भाषा पर तो इनका अद्वितीय अधिकार है। इनका हास्य-बोध भी कितना प्रशंसनीय है.... ! बांके के लिए प्रशंसा और सम्मान के घुमरते भावों के बशीभूत वह निरंतर करतल ध्वनि करती जा रही थी।

रात्री-भोज के बाद जब दोनों वापसी के लिए कार में बैठे तो रामदुलारी के चेहरे पर अप्रतीम श्रद्धा और सम्मान का भाव था जबकि बांके अपनी खिलखिलाहट नहीं रोक पाया.... "आदरणीय अतिथि वृन्द.... हा... हा... सुरसरी सम सब कर हित होई.... हा.... हा... हा... हा... आसमा मे सुराग नहीं होता.... हा.... हा.... हा... हा... ! ओल्ड-फैशंड वोर्ड्स.... हा...हा...हा.... !" खुशी से चमक रही रामदुलारी की आँखें सजल हो गयी। कार माध्यम वेग से पटना की सुनसान सड़क पे अनीसाबाद की ओर दौड़ती रही।
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पढ़िए रामदुलारी की जिन्दगी का अगला अध्याय। अगले हफ्ते॥ इसी ब्लॉग पर !!!

5 टिप्‍पणियां:

  1. 32 वें अन्क तक पहुंचने के लियए बधाई. अच्छा लगा. अगले किश्तों का इन्तज़ार रहेगा.

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  2. कहानी रोचक है. ट्रांसलिटरेशन की गलतियों की भरमार खटकती है.

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  3. हेम जी, बहुत-बहुत धन्यवाद ! टाइपिंग की अशुद्धियों को यथासंभव दूर करने का प्रयास किया है !!

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  4. रोचकता तो बना ही है. आशा है आगे भी बना रहेगा.

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  5. वाह! मज़ा आ गया।
    बहुत रोचकता वाला प्रसंग!
    रामदुलारी का जिवन अब जटिल पर रोचक दौर में प्रवेश कर रहा है।

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